ब्रिटिश मूल की वह महिला जिसने भारत की आजादी के लिए किया संघर्ष

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Annie Besant Biography  – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम एक महान समाज सुधारक, प्रसिद्ध लेखिका, थियोसोफिस्ट एनी बेसेंट के बारे में बात करेंगे. दोस्तों हमारे देश की आजादी के लिए कई लोगों ने संघर्ष किया है. देश की आजादी के लिए कई भारतीयों ने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, लेकिन आज हम भारत की आजादी की आवाज बुलंद करने वाली उस महिला की बात कर रहे हैं, जो तन से भले ही एक विदेशी महिला थी, लेकिन मन से वह हमेशा एक भारतीय ही रही.

दोस्तों लंदन में जन्मी एनी बेसेंट मूलत: ब्रिटिश थीं. ब्रिटिश मूल की होने के बावजूद एनी बेसेंट ने भारत की आजादी के लिए अपनी आवाज उठाई. उन्होंने भारत के लोगों के अंदर आजादी की भावना को जगाने का काम किया. इसके अलावा भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने की भी एनी बेसेंट ने बहुत कोशिश की.

दोस्तों एनी बेसेंट कौन थी (who was annie besant), यह तो हम जान ही चुके है. आगे हम एनी बेसेंट से जुड़ी अन्य चीजों के बारे में बात करेंगे. जैसे – एनी बेसेंट भारत कब आई थी? और भारत की आजादी के लिए उन्होंने किस तरह योगदान दिया था. तो चलिए शुरू करते है एनी बेसेंट का जीवन परिचय.

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एनी बेसेंट जीवनी (Annie Besant Biography)

एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन के कलफम में हुआ था. एनी बेसेंट के पिता का नाम विलियम वुड था. एनी बेसेंट की माता का नाम एमिली मॉरिस है. एनी बेसेंट के अर्थर, माबेल नाम के दो बच्चे थे. एनी बेसेंट के पति का नाम फ्रैंक बेसेंट था. एनी बेसेंट जब 20 साल की थी तभी उनकी शादी फ्रैंक बेसेंट से हुई थी, लेकिन बाद में धार्मिक मतभेदों के कारण दोनों अलग हो गए.

पति से अलग होने के बाद एनी बेसेंट के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया. ऐसे में उन्होंने राष्ट्रीय सेक्युलर सोसायटी की लेखिका और वक्ता के रूप में कार्य करने लगी. साल 1880 में उनके दोस्त ब्रेडलॉफ नार्थ हेम्प्टन के संसद के सदस्य बन गए. इसके बाद वह मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन (एसडीएफ) की प्रवक्ता बन गई.

साल 1890 में एनी बेसेंट की मुलाकात हेलेना ब्लावस्टकी से हुई. इस मुलाकात के बाद एनी बेसेंट की रूचि थियोसोफी में होने लगी. साल 1893 में थियोसिफिकल सोसायटी के कार्यों के लिए एनी बेसेंट भारत आई. इसके बाद उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और भारतीयों के बारे में जानकारी हासिल की. एनी बेसेंट को भारतीयों पर ब्रिटिश शासन के अत्यचार और यहाँ की शिक्षा व्यवस्था से काफी दुःख पहुंचा. भारतीयों को अच्छी शिक्षा मिल सके, इसके लिए उन्होंने साल 1898 में वाराणसी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की.

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भारत भ्रमण के दौरान एनी बेसेंट को हिन्दू धर्म को करीब से जानने का मौका मिला. एनी बेसेंट हिन्दू धर्म से बहुत प्रभावित थी. हिन्दू धर्मं को लेकर एनी बेसेंट ने कहा था कि, ‘मैंने विश्व के महान धर्मों का 40 वर्षों तक अध्ययन किया है और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूँ कि कोई भी धर्म हिन्दू धर्म जितना उत्तम, वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और दर्शन श्रेष्ठ नहीं है. आप जितना हिन्दू धर्मे के बारे में जानोगे उतना हिन्दू धर्म से प्यार करने लगोगे.

साल 1914 में एनी बेसेंट ने समाचार पत्र ‘कॉमनविल’ की स्थापना की और साथ ही ‘मद्रास स्टैंडर्ड’ को खरीद कर उसे ‘न्यू इंडिया’ नाम दिया. उन्होंने अखबार के ज़रिये ब्रिटिश सरकार से भारत में सेल्फ रूल की माँग की थी. भारत की स्वतंत्रता की माँग करते हुये अनेक पत्र और लेख लिखे. इसके अलावा एनी बेसेंट हर बुराई के खिलाफ खुलकर आवाज उठाती थीं. साल 1916 में एनी बेसेंट की मुलाकात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से हुई. इस मुलाकात के बाद एनी बेसेंट ने होमरुल आन्दोलन की शुरुआत की.

साल 1917 में एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. उन्होंने भारत की आजादी के लिए कई तरह से काम किया. वह ब्रिटिश नागरिक थीं, इसलिए देशद्रोह के आरोप में उन्हें जेल भी भेजा गया. हालांकि स्वतंत्रता के विषय में वह गांधी जी के विचारों से असहमत थीं, जिस कारण उन्होंने बाद में कांग्रेस में अपनी सक्रियता कम कर दी. 20 सितंबर 1933 को एनी बेसेंट का अडयार में निधन हुआ.

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एनी बेसेंट भले ही विदेशी मूल की थी, लेकिन वह दिल से हमेशा भारतीय ही रही. वो भारत को ही अपनी मातृभूमि समझती थीं. महात्मा गांधी से लेकर उनके दौर के सामाजिक नेताओं ने हमेशा उनकी प्रशंसा की. देश की आजादी के लिए वो हर बलिदान देने को तैयार थीं.

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