kakori kand full story – जानिए काकोरी कांड की पूरी कहानी, जिससे हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत

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kakori kand full story – दोस्तों आज हम अगर आजाद भारत में साँस ले रहे हैं तो इसमें हमारे देश के वीर क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा योगदान है. हमारे देश के कई वीर क्रांतिकारियों ने हमारी आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. अलग-अलग समय पर अंग्रेज़ों के खिलाफ हमारे क्रांतिकारियों ने कई घटनाओं को अंजाम दिया.

आज इस आर्टिकल में हम एक ऐसी ही महत्वपूर्ण घटना के बारे में बात करेंगे, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत को अंदर तक हिलाकर रख दिया था. दोस्तों हम बात कर रहे है काकोरी कांड के बारे में. हम सभी काकोरी कांड को रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत कुल दस क्रांतिकारियों के लिए याद किया जाता है.

हालांकि आज भी काकोरी कांड को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल है. जैसे- काकोरी कांड क्या है? (what is kakori scandal), काकोरी कांड कब हुआ था? (When did Kakori incident happen), काकोरी कांड कहां हुआ था?, काकोरी कांड के नायक कौन थे? और काकोरी कांड के बाद किन क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी. तो चलिए शुरू करते है काकोरी कांड की पूरी कहानी (kakori kand full story).

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दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है साल 2020 से. दरअसल उस साल महात्मा गाँधी ने देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. इस आंदोलन में पूरे देश के लोगो ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. कुछ साल में यह आन्दोलन अपने चरम पर पहुँच गया. साल 1922 में कुछ आंदोलनकारियों ने गोरखपुर में एक पुलिस थाने को घेरकर उसमें आग लगा दी. इस घटना में 20 से भी अधिक पुलिसकर्मी मारे गए. इस घटना को चौरी-चौरा कांड भी कहते है.

महात्मा गाँधी अहिंसा के पुजारी थे और चौरी-चौरा कांड से वह बुरी तरह आहत हुए. इस घटना के बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. इससे पूरे देश में निराशा का माहौल छा गया. खासकर युवा क्रांतिकारियों को इससे बड़ा धक्का लगा. युवा क्रांतिकारियों को लगता था कि अगर अंग्रेजों को इस देश से बाहर निकालना है तो हमें हथियार उठाने ही पड़ेंगे. ऐसे में उन्होंने एक संगठन का गठन किया.

शचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया गया. योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बक्शी, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी इस संगठन से जुड़े. अब इस संगठन के लोगों के सामने हथियार खरीदने के लिए पैसों की चुनौती आ खड़ी हुई. ऐसे में क्रांतिकारियों ने डकैती करके पैसों का प्रबंध करना शुरू किया. हालांकि इस कारण अंग्रेजी हुकूमत उन्हें चोर कहकर बदनाम करने लगी. ऐसे में क्रांतिकारियों ने फैसला किया कि हथियार खरीदने के लिए अब सरकारी खजाने को ही लूटा जाए. इसके लिए क्रांतिकारियों ने एक योजना बनाई.

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9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लेकर एक ट्रेन काकोरी स्टेशन से चली. ट्रेन चलने के कुछ देर बाद ही क्रांतिकारियों ने बंदूक की नोक पर ट्रेन को रोक दिया और गार्ड को बंधक बना लिया. इसके बाद क्रांतिकारियों ने लोगों को समझा दिया कि किसी को कुछ नहीं होगा बस वह चुपचाप अपनी जगह बैठे रहे. इसके बाद अन्य क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूट लिया. इस दौरान दोनों ओर से गोलियां भी बीच. इस बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगने से मौत हो गई. इस घटना को काकोरी कांड कहते है.

काकोरी कांड को 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर अंजाम दिया था. उन 10 क्रांतिकारियों और उनसे जुड़े अन्य क्रांतिकारियों के नाम है – शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुब्लिस, रामदुलारे, अशफाक उल्ला खां. इनके अलावा भी अन्य क्रांतिकारी थे, जिन्होंने इस घटना में सहयोग किया था. काकोरी कांड में क्रांतिकारियों के हाथ 4601 रुपए की रकम आई. उस समय यह बड़ी रकम हुआ करती ही.

काकोरी कांड के कारण अंग्रेजी हुकूमत अंदर तक हिल गई. आनन-फानन में 40 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि इस घटना को 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर अंजाम दिया था. इसके बाद अदालत में मामला चला और राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सुनाई गई. इनके अलावा कई क्रांतिकारियों को 14 साल की जेल हुई. 2 क्रांतिकारियों को सरकारी गवाह बनने पर छोड़ दिया गया.

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सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में फांसी की सजा सुनाई गई. इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई. फिर अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह को फांसी दी गई. हालांकि चंद्रशेखर आजाद अंत तक पुलिस की गिरफ्त से दूर रहे. 27 फ़रवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए.

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