Abdul Hamid Biography – भारतीय सेना का वह शेर जिसने अकेले ही उड़ा दिए थे पाकिस्तान के 8 टैंक

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Abdul Hamid Biography – दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे वीर अब्दुल हमीद के बारे में. भारतीय सेना के हवलदार रहे अब्दुल हमीद देश के जांबाज योद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता और साहस का परिचय देते पाकिस्तान के 8 पेटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया था. अब्दुल हमीद को उनकी असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था. तो चलिए दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि कैसे 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया.

अब्दुल हमीद की जीवनी (Abdul Hamid Biography)

अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में स्थित धरमपुर नाम के छोटे से गांव में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. अब्दुल हमीद के पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. अब्दुल हमीद के परिजन अपना गुजर-बसर करने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करते थे. हालांकि अब्दुल हमीद अपने पारिवारिक कार्य में बिलकुल भी रूचि नहीं थी.

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अब्दुल हमीद के पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे. ऐसे में अब्दुल हमीद का मन भी बचपन से ही दंगल के दांव पेंचों में ज्यादा लगता था. लाठी चलाना, कुश्ती करना और नदी के तेज बहाव में गोते लगाना उन्हें पसंद आता था. अब्दुल हमीद को अन्याय से सख्त नफरत थी. एक दिन उनके गाँव के किसी गरीब किसान की फसल कुछ गुंडे जबरन ले जाने लगे तो अब्दुल हमीद अकेले ही उनसे भीड़ गए और आखिर में गुंडों को खाली हाथ लौटना पड़ा.

अब्दुल हमीद का एक सपना था कि वह किसी दिन भारतीय आर्मी में शामिल होकर देश की रक्षा करे. इसके लिए अब्दुल हमीद ने खूब कोशिश की और आख़िरकार उनका सपना पूरा हुआ 27 दिसम्बर 1954 को. इस दिन अब्दुल हमीद भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में शामिल हुए. अब्दुल हमीद अपने पूरे जीवनकाल में इसी रेजिमेंट में रहे. सेना में रहते हुए अब्दुल हमीद ने आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में अपनी सेवाएं दी. इसके अलावा अब्दुल हमीद ने साल 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भी भाग लिया था.

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साल 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति निर्मित हुई तब अब्दुल हमीद छुट्टी लेकर अपने घर आए हुए थे. उन्हें अचानक आदेश मिला कि उनकी छुट्टी कैंसिल हो गई है और उन्हें वापस ड्यूटी पर लौटना होगा. कहा जाता है कि उस समय अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि, ‘देश के लिए उन्हें जाना ही होगा’. इस तरह अब्दुल हमीद वापस ड्यूटी पर लौट गए और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.

एक रिपोर्ट के अनुसार 9 सितंबर को भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अब्दुल हमीद चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों के बीच बैठे थे. तभी उन्हें पाकिस्तानी टैंको की आवाज सुनाई दी. वह अपनी पॉजिशन लेकर बैठ गए. कुछ ही देर में उन्हें पाकिस्तानी टैंक नजर आए. अब्दुल हमीद ने कुछ देर इंतजार किया और जैसे ही पाकिस्तानी टैंक उनकी रिकॉयलेस गन की रेंज में आए, उन्होंने फायर कर दिया. अब्दुल हमीद ने एक के बाद एक 4 पाकिस्तानी टैंकों को उड़ा दिया.

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इसके बाद 10 सितंबर को अब्दुल हमीद ने 3 और पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया. इसके बाद पाकिस्तानी सैनिक की नजर अब्दुल हमीद पर पड़ गई. पाकिस्तानी सैनिकों ने अब्दुल हमीद को टारगेट कर फायर किया, ठीक उसी वक़्त अब्दुल हमीद ने भी फायर कर दिया. अब्दुल हमीद के फायर से एक और पाकिस्तानी टैंक नष्ट हो गया, लेकिन इस दौरान उनकी जीप के भी परखच्चे उड़ गए और अब्दुल हमीद देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए.

अब्दुल हमीद की असाधारण बहादुरी को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. इसके अलावा 28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक डाक टिकट जारी किया. इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर बनी हुई है.

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