जानिए कृषि कानून 2020 क्या है? किसानों और सरकार के बीच किस बात पर फंसा है पेंच

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पिछले एक महीने से भी अधिक समय से किसान केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान इस बार लंबी लड़ाई लड़ने की तैयारी के साथ आए हैं। किसानों का कहना है कि अगर यह लड़ाई एक साल तक भी जारी रखना पड़ी तो हम जारी रखेंगे। हालांकि यह बात भी सच है कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार भी किसानों की समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रही है। यहीं कारण है कि केंद्र के मंत्री और किसान नेताओं के बीच अब तक कई बार बैठक भी हो चुकी है, हालांकि यह बैठके किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकी है। किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों को रद्द कर दे जबकि सरकार कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन कानून रद्द नहीं करना चाहती है। तो चलिए आज हम कुछ पॉइंट से समझते है कि आखिर सरकार और किसानों की बात कहाँ अटकी हुई है।

  1. सरकार और किसानों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का है। किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार उन्हें एमएसपी की गारंटी दे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार भी किसानों को लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है लेकिन किसानों को डर है कि इस कानून से मंडिया खत्म हो जाएगी।
  2. एमएसपी को लेकर किसानों का कहना है कि एमएसपी कभी खत्म नहीं की जाएगी जबकि किसानों का कहना है कि उन्हें एमएसपी पर पुरानी व्यवस्था नहीं, बल्कि एक नई व्यवस्था चाहिए। किसानों का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था से छह फीसदी किसानों को ही फायदा मिलता है। किसान चाहते हैं कि सरकार एमएसपी पर एक नई व्यवस्था लागू करे।
  3. केंद्र सरकार हर साल तय करती है कि किसानों से कितना अनाज खरीदना है। ऐसे में किसान कितना भी अनाज पैदा करे लेकिन सरकार तय मात्रा में ही खरीदती है। किसानों को इस बात का डर है कि अगर सरकार ने फसल खरीद का लक्ष्य काफी कम कर दिया तो किसानों को बची फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ेगी।
  4. किसान आन्दोलन का सबसे ज्यादा असर पंजाब और हरियाणा में देखा जा रहा है। इसका कारण यह है कि इन दोनों राज्यों में सरकारें एमएसपी पर सबसे ज्यादा अनाज खरीदती है। यही वजह है कि इन दोनों राज्यों के किसान कड़ाके की ठंड पड़ने के बावजूद कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं।
  5. किसानों की मांग है कि सरकार ऐसा कानून बनाए, जिसके तहत अगर किसान अपनी फसल किसी निजी कंपनी को बेचे तो उनसे भी एमएसपी की गारंटी मिले। यानी एक ऐसा कानून जिससे किसानों की फसल चाहे सरकार खरीदे या प्राइवेट खरीदार, कोई भीर फसल को एमएसपी से कम पर खरीद ही न पाए।

MSP क्या है (What is MSP) :- दरअसल किसानों के हितों की रक्षा के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि (MSP) की व्यवस्था शुरू की गई थी। इस व्यवस्था के तहत अगर बाजार में किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिलता है तो सरकार किसानों से उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है। इससे किसानों को नुकसान से बचाया जाता है। किसी भी फसल की MSP पूरे देश में एक ही होती है। इसके तहत अभी 23 फसलों की ख़रीद की जा रही है। इसमें गेहूँ, ज्वार, बाजरा, धान, मक्का, मूंगफली, सोयाबीन, मूंग, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं।

उत्तर भारत में ही क्यों हो रहा किसानों का विरोध प्रदर्शन? :- यहां सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए कृषि बिल का विरोध सिर्फ उत्तर भारत में ही क्यों हो रहा है जबकि किसानों की समस्या हर जगह एक जैसी है। इसका कारण यह है कि केंद्र और राज्य की सरकारें किसानों से एपीएमसी के अंतर्गत जो उत्पादन खरीदती हैं वो पूरे देश का औसत 10 प्रतिशत ही होता है। बाकि 90 प्रतिशत किसान अपना उत्पादन खुले बाजार में बेचने के लिए मजबूर है। इसके उलट पंजाब में स्थिति बिलकुल विपरीत है। पंजाब में 90 प्रतिशत किसानों से उनका उत्पादन सरकारें एपीएमसी की मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लेती है। इससे 10 प्रतिशत किसान ही अपना उत्पादन खुले बाजार में बेचते है। इस समय पूरे देश में लगभग 6,000 एपीएमसी में से 33 फीसदी अकेले पंजाब में ही हैं। ऐसे में यहां के किसानों को गेहूं और चावल के दाम मध्यप्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों से ज्यादा मिलते है। यहीं कारण है कि केंद्र सरकार के नए बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में देखा जा रहा है। किसानों को डर है कि अगर वह एपीएमसी के सिस्टम से बाहर जा कर अपना माल बेचेंगे तो प्राइवेट व्यापारी उनका शोषण करेंगे।

कृषि बिल के फायदे :- केंद्र सरकार जब नए कृषि क़ानून लेकर आई थी तब सरकार ने कहा था कि इससे किसानों को बहुत फायदा होने वाला है। नए बिल के अनुसार अब किसान अपने उत्पादों को दूसरे राज्य में स्वतंत्र रूप से बेच सकेंगे। इससे किसानों के पास अपने उत्पाद बेचने के विकल्प बढ़ जाएँगे। राज्यों की कृषि उत्पादन विपरण समिति यानि एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के अधिकार बरकरार रहेंगे। इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा। अभी APMCs द्वारा विभिन्न वस्तुओं पर 1 से 10 प्रतिशत तक का टेक्स लगता है, लेकिन राज्य से बाहर व्यापर करने पर टैक्स नहीं लगेगा। नए कानूनों से किसान सीधे बड़े व्यापारियों से जुड़ सकेंगे, जिससे उन्हें फायदा होगा। कृषि के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी , जिससे खेती को फायदा होगा और लोगों को रोजगार मिलेगा। नए कृषि कानूनों से बिचौलियों वर्चस्व कम हो जाएगा, जो पूरे देश में एक मुद्दा था।

कृषि बिल के नुकसान :– वैसे देखा जाए तो केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानूनों में जो बातें लिखी गई हैं, उन्हें सही से लागू किया जाए तो इससे किसानों को फायदा होना तय है। लेकिन किसानों को असल डर इसी बात का है कि सरकार बिलों के समर्थन में को बातें कह रही है, वैसा जमीन पर असंर नहीं दिखाई देगा। किसानों को डर है कि नए कानूनों से मंडियां खत्म हो जाएगी और बड़ी कंपनियां अपनी मनमानी करेगी। नए कानूनों से कालाबाजारी बढ़ेगी। किसान पूरी तरह से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के दायरे में आ जायेगा। किसानों को डर है कि कॉन्ट्रैक्ट होने के बाद कंपनियां किसानों से फसल उत्पादन करवाएंगी और मुनाफा कमाएगी।

किसान बिल 2020 क्या है? :- केंद्र सरकार का कहना है कि तीनों नए कानून बिल से किसानों का फायदा होगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी। हालांकि किसान केंद्र सरकार की बातों से सहमत नहीं है। तो चलिए जानते है कि आखिर किसान बिल 2020 क्या है? आखिर क्यों किसान किसान बिल 2020 का विरोध कर रहे है?

1। आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020

इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने और उसकी कीमतों को नियंत्रित रखना है। लेकिन केंद्र सरकार के नए कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। केंद्र सरकार का दावा है कि ऐसा करने से बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा।

2। कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020

केंद्र सरकार के इस नए कानून के अनुसार किसान अब एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के अलावा भी अपनी फसल कहीं भी बेच सकेगा। केंद्र सरकार का कहना है कि इस नए कानून से किसानों को मंडी से बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिलेगी। किसान दूसरे राज्य में जाकर भी अपनी फसल बेच सकेगा। इसके अलावा किसानों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होगी।

3। कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020

इस नए कानून के अनुसार अब किसान फसल उगाने से पहले ही व्यापारी से समझौता कर सकते है। इस समझौते में फसल की कीमत और उसकी गुणवत्ता जैसी बातों को शामिल किया जाएगा। इसके तहत व्यापारी को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान करना होगा और बाकी का पैसा 30 दिन के अंदर करना होगा। साथ ही खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी भी व्यापारी की होगी।

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