Rani Gaidinliu Biography – भारत की वह महिला स्वतंत्रता सेनानी जिससे डरते थे अंग्रेज

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Rani Gaidinliu Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम उत्तर-पूर्वी राज्यों की मशहूर महिला स्वतंत्रता सेनानी (Woman Freedom Fighter) व क्रांतिकारी रानी गाइदिन्ल्यू (Rani Gaidinliu) के बारे में बात करेंगे. रानी गाइदिन्ल्यू ने भारत की आजादी के लिए बड़ा योगदान दिया है, हालांकि यह भी सच है कि इतिहास की किताबों में रानी गाइदिन्ल्यू को कभी भी वह स्थान नहीं मिला जो अन्य स्वतंत्रता सेनानी को मिला. आज भी देश के कई लोगों ने रानी गाइदिन्ल्यू का नाम तक नहीं सुना है.

आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि रानी गाइदिन्ल्यू कौन थी? (who was queen gaidinliu) और देश की आजादी के लिए उन्होंने कैसा और क्या योगदान दिया. कैसे कई साल उन्होंने जेल में गुजार दिए. तो चलिए दोस्तों शुरू करते है रानी गाइदिन्ल्यू का जीवन परिचय.

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रानी गाइदिन्ल्यू जीवनी (rani gaidinliu biography)

रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 में मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के नुंगकाओ गाँव में हुआ था. उस समय ब्रिटिश मिशनरियों द्वारा जबरदस्ती नागा जनजातियों की इच्छा के विरुद्ध उनका धर्म परिवर्तन किया जाता था. इसके खिलाफ रानी गाइदिन्ल्यू के चचेरे भाई और कबीले के आध्यात्मिक नेता हाइपो जादोनंग ने आवाज उठाई. जब रानी गाइदिन्ल्यू 13 साल की थी तभी वह हाइपो जादोनंग के द्वारा शुरू किए गए सामाजिक-धार्मिक आंदोलन में भाग लेने लगी.

इस आन्दोलन के जरिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की गई. इस आन्दोलन का नारा था कि, ‘हम आजाद लोग हैं, गोरों को हम पर हुकूमत नहीं करना चाहिए.’ साल 1931 में ब्रिटिश राज ने हाइपो जादोनंग को राजद्रोह और मणिपुरी व्यापारियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया और फांसी पर चढ़ा दिया.

अपने भाई की मौत के बाद रानी गाइदिन्ल्यू ने आन्दोलन की जिम्मेदारी उठाई. रानी गाइदिन्ल्यू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ कई छापामार युद्ध शुरू हो गया. ब्रिटिश सैनिकों के पास जहाँ बंदूक थी, वहीं ज़ेलियांगरोंग जनजाति के लोग तीर और भाले से उनका मुकाबला करने लगे. 17 अक्टूबर 1932 को को कैप्टन मैकडोनाल्ड ने रानी गाइदिन्ल्यू को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

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साल 1937 में जब जवाहरलाल नेहरू मणिपुर के दौरे पर गए थे तो उन्होंने शिलांग जेल में जाकर रानी गाइदिन्ल्यू से मुलाकात की थी और उन्हें मुक्त कराने का वादा किया था. जवाहरलाल नेहरू ने ही गाइदिन्ल्यू को ‘पहाड़ों की बेटी’ कहते हुए उन्हें रानी की उपाधि दी थी. जवाहरलाल नेहरू ने रानी गाइदिन्ल्यू की रिहाई के लिए कई प्रयास किए, लेकिन ब्रिटिश राज रानी गाइदिन्ल्यू से इतना दहशत में था कि उन्हें रिहा नहीं किया.

रानी गाइदिन्ल्यू ने करीब 14 साल तक जेल में बिताए. साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो रानी गाइदिन्ल्यू को रिहा किया गया. देश की आजादी के बाद भी रानी गाइदिन्ल्यू ने लोगों की भलाई के लिए काम करना जारी रखा. उन्होंने भारत संघ के अंदर एक अलग ज़ेलियांगरोंग क्षेत्र की मांग भी की. हालाँकि 60 के दशक में कुछ अन्य नागा नेताओं के विरोध के कारण रानी गाइदिन्ल्यू को भूमिगत होना पड़ा.

असम, मणिपुर और नागालैंड के स्थानीय लोगों के लिए एक मातृभूमि की मांग को लेकर रानी गाइदिन्ल्यू ने एक आन्दोलन का नेतृत्व भी किया. इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी से भी बात की. 17 फरवरी 1993 को रानी गाइदिन्ल्यू का 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया.

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रानी गाइदिन्ल्यू भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी विरासत आज भी लोगों के बीच जिंदा है. स्वतंत्रता संग्राम में उनके सभी प्रयासों के लिए साल 1972 में ताम्र पत्र, 1982 में पद्म भूषण, 1983 में विवेकानंद सेवा पुरस्कार और मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा उन्हें बिरसा मुंडा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा 1996 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट और 2015 में एक स्मारक सिक्का भी जारी किया गया था.

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