Udham Singh Biography – भारत मां का वीर सपूत, जिसनें लंदन जाकर लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

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Udham Singh Biography – भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी में से एक सरदार उधम सिंह का नाम उन अमर शहीदों में से है. उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए इस हत्याकांड के दोषी माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर को लंदन में जाकर गोली मार दी थी और कई निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लिया था. उन्होंने चंदशेखर आजाद, राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव आदि जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें वह कभी भी नहीं भुला सकता है.

उधम सिंह का जीवन परिचय (udham singh biography in hindi) :-

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम गाँव में हुआ था. उनकी माता और पिता के दो पुत्र थे एक मुक्तासिंह और दुसरे ऊधम सिंह. उनके जन्म के दो साल बाद ही 1901 में उनकी माँ का निधन हो गया और 1907 में उनके पिता भी चल बसे. ऊधमसिंह और उनके बड़े भाई मुक्तासिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह था जी की खालसा अनाथालय से मिले थे.

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उधम सिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे. सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है. बड़े भाई के निधन के बाद उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए.

उधम सिंह के सामने ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था. वे प्रत्यक्षदर्शी थे. इस हत्याकांड के मुख्य दोषी तीन लोग थे. एक थे पंजाब के गवर्नर सर माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर, दूसरे थे ब्रिगेडियर जनरल ई. एच. डायर और तीसरे थे भारत के राज्य सचिव लार्ड जेट लैंड थे. ब्रिगेडियर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में तत्कालीन आदेश पर 90 सैनिकों ने मिलकर जलियांवाला बाग़ को चारों तरफ से घेर कर मशीनगन से गोलियाँ चलाई. उस बाग में सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया.

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जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद उधम सिंह ने इस हत्याकांड के दोषी माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर और गोली चलाने का आदेश देने वाले जनरल डायर को मारने की प्रतिज्ञा ली. उधम सिंह देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा ली और उसको पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे. जिसके बाद कई क्रांतिकारी इस घटना में उतर पड़े. सरदार उधम सिंह ने क्रांतिकारियों से चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बॉव्बे और अमेरिका की यात्रा कर क्रांति के लिए धन इकट्ठा किया और अपने प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उन्होंने यात्रा के दौरान ही एक कार खरीदी और छह गोलियों वाली एक रिवॉल्वर भी खरीदी.

हालांकि उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले ही जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के मुख्य दोषी जनरल डायर बीमारी के चलते मर गया था. ऐसे में उधम सिंह दूसरे दोषी माइकल ओ’ ड्वायर को मारने के लिए सही समय का इंतजार करने लगे. उधम सिंह को जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का बदला 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल की बैठक में मिला था. जहां माइकल ओ’ ड्वायर भी वक्ताओं में से एक थे. उस बैठक स्थल पर उधम सिंह पहले ही पहुंच गए और अपनी रिवॉल्वर को एक मोटी किताब में इस प्रकार से छिपाया था कि ड्वायर की जान आसानी ले सके.

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ऊधम सिंह जी ने उस बैठक की दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए माइकल ओ’ ड्वायर पर गोलियाँ चला दीं. जिसमे से दो गोलियाँ ड्वायर को लगीं, उससे तुरन्त ही डायर की मौत हो गई. गोलीबारी में डायर के दो अन्य साथी भी घायल हो गए थे. लेकिन ऊधमसिंह जी ने वहाँ से भागने की भागने की कोशिश नहीं की और स्वयं को गिरफ़्तार करा दिया और उन पर मुक़दमा चला.

पेंटनविले जेल में 4 जून 1940 को उधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें फाँसी दे दी गयी. इस प्रकार की भारतीय स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी उधम सिंह जी ने इतिहास में अपनी शहादत देकर अमर हो गया. उधम सिंह की अस्थियाँ को सम्मान सहित भारत में लाई गईं और उनके गाँव में उनकी समाधि बनाई गई.

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