Brigadier Usman Biography – आजाद भारत का पहला शहीद, जिसने ठुकरा दिया था पाक आर्मी चीफ का पद

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Brigadier Usman Biography – दोस्तों आज अगर हम अपने घरों में चैन की नींद सो पा रहे हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण हमारे देश के वीर जवान हैं, जो दिन-रात सीमा पर देश की रखवाली कर रहे हैं. हमारे देश पर कोई मुसीबत ना आए, इसके लिए हमारे सैनिक अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटते. देश की आजादी के बाद से अब तक कई सैनिक देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं. लेकिन क्या आप जानते है कि आजाद भारत का सबसे पहला शहीद कौन है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब बहुत कम लोगों को पता होगा.

दोस्तों आजाद भारत के पहले शहीद का नाम ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान है. ब्रिगेडियर उस्मान एक सच्चे देश भक्त थे. उन्होंने अपने देश के लिए पाकिस्तान का आर्मी चीफ का पद भी ठुकरा दिया और देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ भी कहा जाता है. हालाँकि यह देश का दुर्भाग्य ही है कि आज देश के युवा ब्रिगेडियर उस्मान जैसे वीर के बारे में नहीं जानते हैं.

तो दोस्तों चलिए आज हम इस आर्टिकल के लिए जानेंगे कि ब्रिगेडियर उस्मान कौन थे? उन्हें क्यों भारत का पहला शहीद कहा जाता है.

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ब्रिगेडियर उस्मान की जीवनी (Brigadier Usman Biography)

दोस्तों शहीद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 12 जुलाई 1912 को मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था. ब्रिगेडियर उस्मान के पिता का नाम मुहम्मद फारुख था. ब्रिगेडियर उस्मान के दो भाई थे. बड़े भाई टाइम्स ऑफ इन्डिया में उपसम्पादक थे जबकि छोटे भाई सेना में थे. उस समय ब्रिगेडियर उस्मान के परिवार की गिनती क्षेत्र के बड़े जमींदार घरानों में होती थी. यहीं कारण है कि ब्रिगेडियर उस्मान की परवरिश बड़े शान और शौकत से हुई थी.

सेना में जाने का निर्णय

ब्रिगेडियर उस्मान के पिता मोहम्मद फारूक पुलिस अफसर थे. मोहम्मद फारूक चाहते थे कि उनक बेटा सिविल सेवा में जाए, लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान के सीने में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी. उन्होंने सेना में जाने का निर्णय लिया. इसके लिए ब्रिगेडियर उस्मान में रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट के लिए अप्लाई किया और उसमें पास हुए. ब्रिगेडियर उस्मान उन 10 लोगों में से एक थे, जिन्हें इस कौर्स के लिए चुना गया था. ब्रिगेडियर उस्मान की बैच में सैम मानेकशॉ और मोहम्मद मूसा भी थे, जो आगे चलकर भारत-पकिस्तान के आर्मी चीफ बने.

खान बहादुर

साल 1935 में ब्रिगेडियर उस्मान की नियुक्ति बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में हुई. साल 1936 में ब्रिगेडियर उस्मान सेना में लेफ्टिनेंट बन गए. इसके बाद साल 1941 में वह कैप्टन बने. साल 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिगेडियर उस्मान ने ब्रिटिश फौज की ओर से बर्मा में सेवाएं दी थी. ब्रिगेडियर उस्मान एक बहादुर सैनिक थे. उनकी बहादुरी को देखते हुए एक अंग्रेज लेफ्टिनेंट ने उन्हें खान बहादुर के ख़िताब से नवाज़ा था.

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पाकिस्तान जाने से किया इनकार

साल 1947 में देश की आजादी और विभाजन के बाद सेना को दो हिस्से में बांटा जाने लगा. ब्रिगेडियर उस्मान के हाथों में बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की कमान थी. इस रेजिमेंट के ज्यादातर सैनिक मुस्लिम थे. यहीं कारण है कि देश के विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए. लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान को अपनी मातृभूमि से बहुत प्यार था. इसलिए उन्होंने पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया, जिसके बाद उनका ट्रांसफर डोगरा रेजिमेंट में कर दिया गया.

पाक सेनाध्यक्ष का पद ठुकराया

दूसरी तरह मोहम्मद अली जिन्ना को ब्रिगेडियर उस्मान के इस फैसले से खुश नहीं थे. जिन्ना ब्रिगेडियर उस्मान की काबिलियत और वीरता से परिचित थे, इसलिए उन्होंने ब्रिगेडियर उस्मान को लालच दिया कि अगर वह पाकिस्तान आ जाते हैं तो वह उन्हें पाकिस्तान आर्मी का चीफ बना देंगे. इस पर ब्रिगेडियर उस्मान ने जवाब दिय कि, ‘मैं भारत में जन्मा हूं और इसी जमीन पर मैं आखिरी सांस लूंगा.’

ब्रिगेडियर उस्मान ने चलाई पहली गोली

देश की आजादी को पांच महीने ही हुए थे कि पाकिस्तान ने कबायली घुसपैठियों के जरिए जम्मू कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी. लगभग 5000 कबायली नौशेरा में आकर एक मस्जिद की आड़ लेकर भारतीय सेना पर फायरिंग करने लगे. इसके जवाब में ब्रिगेडियर उस्मान ने कबायलियों पर पहली गोली चलाई और उसके बाद बाकि सैनिकों ने भी फायरिंग शुरू कर दी.

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पाकिस्तान से युद्ध

भारतीय सेना और कबायलियों के बीच हुई लड़ाई में 22 सैनिक शहीद हुए जबकि 1000 से ज्यादा कबायली मारे गए और इतने ही घायल हुए. इस हार से पाकिस्तान इतना बौखला गया कि उसने अपने सैनिकों को युद्ध के मैदान में उतार दिया. उस समय 36 साल के ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा- झांगर में अपनी ब्रिगेड का नेतृत्व कर रहे थे. यहाँ भी भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच युद्ध छिड़ गया.

नौशेरा का शेर

ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में भारतीय सेना पूरी ताकत के साथ पाकिस्तान पर टूट पड़ी. इससे पाकिस्तानी सैनिक भी चौंक गए कि भारतीय सेना अचानक इतनी ताकतवर कैसे हो गई. ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुँचाया. हालाँकि युद्ध के दौरान ही 3 जुलाई 1948 को एक तोप का गोला ब्रिगेडियर उस्मान के पास आकर गिरा और ब्रिगेडियर उस्मान शहीद हो गए.

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महावीर चक्र

शहीद ब्रिगेडियर उस्मान के शव का अंतिम संस्कार दिल्ली के जामिया मिल्लिया में किया गया. उनकी शवयात्रा में खुद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शामिल हुए थे. ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया.

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