Sam Manekshaw Biography – मौत, पाकिस्तान और आतंकवाद, सैम मानेकशॉ ने दी सबको मात

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Sam Manekshaw Biography – दोस्तों हमारे देश का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. खासकर हमारे देश के वीर जवानों ने अपनी बहादुरी से कई बार देश का सर गर्व ऊँचा किया है. खासकर साल 1971 में जब पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार करने लगी और महिलाओं के बलात्कार किया जाने लगा तो ऐसे समय में भारतीय सेना पीड़ितों की मदद करने के लिए आगे आई और उन्हें पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से मुक्त कराया और एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ.

दोस्तों साल 1971 में हुआ भारत-पाकिस्तान युद्ध सदियों तक याद रखा जाएगा. भारत के अनेक जवानों ने इस युद्ध में अपनी शहादत दी है. इस युद्ध ने पाकिस्तान ने इतना गहरा जख्म और शर्मिंदगी दी, जिसे वह शायद ही कभी भूल पाए. एक तो भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े करके नया देश बांग्लादेश बनाया. दूसरा यह कि इस युद्ध के अंत में 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने पूरी दुनिया के सामने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया.

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के वैसे तो कई हीरो रहे है, लेकिन आज हम ऐसे शख्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसने इस युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व किया और उनके नेतृत्व में ही भारतीय सेना ने इस युद्ध को जीता. जी हाँ दोस्तों हम बात कर रहे हैं भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष सैम मानेकशॉ की. सैम मानेकशॉ एक बहादुर भारतीय सैनिक थे, जिनकी बहादुरी के एक से बढ़कर एक किस्से हैं. तो चलिए दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे सैम मानेकशॉ की जीवनी.

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सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय (Sam Manekshaw Biography)

भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में एक फारसी परिवार में हुआ था. सैम मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था. इसके अलावा सैम मानेकशॉ को सैम बहादुर के नाम से भी जाना जाता था. सैम मानेकशॉ के पिता पेशे से एक डॉक्टर थे और वह गुजरात राज्य के वलसाड शहर में आकर अपने परिवार सहित बस गए थे. सैम मानेकशॉ की पत्नी का नाम सिल्लो मानेकशॉ है.

सैम मानेकशॉ की शिक्षा (Sam Manekshaw Education)

सैम मानेकशॉ ने पंजाब और नैनीताल से शिक्षा हासिल की है. इसके अलावा उन्होंने कैंब्रिज बोर्ड के स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा में डिक्टेशन हासिल किया.

डॉक्टर बनना चाहते थे सैम मानेकशॉ

सैम मानेकशॉ के पिता डॉक्टर थे, तो सैम मानेकशॉ भी बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहते थे. सैम मानेकशॉ अपने बड़े भाईयों की तरह लंदन जाकर डॉक्टर बनने की शिक्षा लेना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने मना कर दिया. इसके बाद सैम ने देहरादून से इंडियन मिलिट्री एकेडमी की प्रवेश परीक्षा दी और उसमें सफल भी रहे. इसके बाद सैम 1 अक्टूबर 1932 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी में शामिल हो गए. 4 फ़रवरी 1934 को सैम ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर चुने गए. इस तरह सैम की सैन्य जीवन की शुरुआत हुई.

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दूसरे विश्व युद्ध में लिया हिस्सा

ब्रिटिश इंडियन आर्मी में रहने के दौरान सैम ने 1942 में हुए दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया. इस युद्ध के दौरान एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन से सैम को लगातार 7 गोलियां मार दी. यह गोलियां सैम के आंतों, जिगर और गुर्दों में लगी. इस बीच भारतीय सैनिकों को आदेश मिला कि वह वापस आ जाए और घायल सैनिकों को वहीँ छोड़ दे. क्योंकि घायल सैनिकों वापस लाने में समय लगता. लेकिन इसके बावजूद उनका अर्दली सूबेदार शेर सिंह उन्हें अपने कंधे पर उठा कर ले आया.

मौत को दी मात

सात गोलियां लगने से सैम की हालत काफी ख़राब हो चुकी थी. उनके बचने की कोई उम्मीद नजर नही आ रही थी. यहाँ तक कि डॉक्टरों ने भी यह कहकर सैम का इलाज करने से मना कर दिया कि इनका इलाज करना यानि समय बर्बाद करना, क्यों कि उनके बचने की उम्मीद नहीं है. हालाँकि सूबेदार शेर सिंह को विश्वास था कि सैम बच सकते हैं और उन्होंने डॉक्टर पर बंदूक तान दी और कहा कि आप सैम का इलाज करे वरना मैं आपको गोली मार दूंगा. इसके बाद डॉक्टर ने उनका इलाज किया और सैम आश्चर्यजनक रूप से मौत को मात देकर ठीक हो गए.

कोई पीछे नही हटेगा

साल 1946 में लेफ़्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ को सेना मुख्यालय दिल्ली में तैनात किया गया. इसके बाद साल 1948 में कश्मीर का भारत विलय करवाने के लिए महाराजा हरि सिंह से बात करने सैम मानेकशॉ भी वीपी मेनन के साथ श्रीनगर गए थे. इसके बाद साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम मानेकशॉ को चौथी कोर की कमान दी गई. पद संभालने के बाद सैम मानेकशॉ ने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा था कि, ‘जब तक आपको लिखित आदेश नहीं मिलता तब तक कोई पीछे नहीं हटेगा और ध्यान रहे यह आदेश आपको कभी नहीं मिलेगा.’

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इंदिरा गाँधी को ऑपरेशन रूम में जाने से रोका

एक बार की बात है कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण सीमा क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे. इस दौरान इंदिरा गांधी भी अपने पिता नेहरु के साथ आई थी. कहा जाता है कि जब नेहरू और चव्हाण ऑपरेशन रूम में गए और उनके साथ इंदिरा भी अंदर जाने लगी तो सैम ने यह कहते हुए उन्हें रोक दिया कि आप अंदर नही जा सकती क्यों कि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है.

1969 में बने भारतीय सेना प्रमुख

नागालैंड से आतंकवादी गतिविधियों का सफाया करने का श्रेय भी सैम मानेकशॉ को जाता है. उनके कार्यों को देखते हुए ही साल 1968 में सैम मानेकशॉ को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. सैम मानेकशॉ को साल 1969 में भारतीय सेना का अध्यक्ष नियुक्त किया. भारतीय सेना प्रमुख बनने के बाद सैम मानेकशॉ ने सेना में महत्वपूर्ण बदलाव किए. सैम मानेकशॉ ने ही पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध बांग्लादेश की ‘मुक्ति बाहिनी’ का साथ देने का फैसला किया.

इंदिरा गाँधी को किया मना

साल 1971 में जब पाकिस्तानी सेना पूर्वी पकिस्तान के लोगों पर अत्याचार कर रही थी. ऐसे में इंदिरा गाँधी ने सैम मानेकशॉ से पाकिस्तान से युद्ध करने को लेकर सलाह ली. लेकिन सैम मानेकशॉ ने इंदिरा गाँधी को साफ़ मना कर दिया कि भारतीय सेना इस समय युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है. हमें कब युद्ध करना है यह मैं आपको बताऊंगा. आखिर इंदिरा ने सैम मानेकशॉ पर भरोसा जताया और उनका भरोसा सही साबित हुआ. भारत के युद्ध में उतरने के बाद 15 दिनों के भीतर ही पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और 93000 पाकिस्तानी सैनिक बंदी बनाये गए.

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भारत के प्रथम फील्ड मार्शल

सैम मानेकशॉ के महान कार्यों को देखते हुए साल 1972 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. इसके अलावा 1 जनवरी 1973 को उन्हें ‘फील्ड मार्शल’ का पद दिया गया. सैम मानेकशॉ को भारत के प्रथम फील्ड मार्शल बनने का गौरव प्राप्त है. 15 जनवरी 1973 को मानेकशॉ सेवानिवृत्त हो गए. सेवानिवृत्त होने के बाद सैम मानेकशॉ कई कंपनियों के बोर्ड पर स्वतंत्र निदेशक रहे और कुछ कंपनियों के अध्यक्ष भी.

सैम मानेकशॉ का निधन

27 जून 2008 को निमोनिया के कारण वेलिंगटन (तमिल नाडु) के सेना अस्पताल में 94 साल की उम्र में सैम मानेकशॉ का निधन हो गया.

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