Dastaan-E-Mumbai – एक राजा ने दहेज़ में दिया था बॉम्बे, जानें बोम बहिया कैसे बना मुंबई ?

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History of Mumbai in Hindi –

‘सपनों का शहर’ कहलाने वाले मुंबई (Mumbai) तक पहुँचाना कई युवाओं का सपना होता है. लोग अपने सपनों को पूरा करने के लिए लिहाज से मुंबई में कदम रखते हैं. जिनमें से कुछ को सक्सेस मिलती हैं तो वहीँ कुछ गुमनामी में जीते हैं और थकहार कर या तो यहीं बस जाते हैं या फिर वापस अपने घर को लौट जाते हैं. सपनों के शहर मुंबई की रफ़्तार (speed of mumbai) इतनी है कि इससे तालमेल बिठा पाना हर किसी के बस की बात नहीं है.

इस शहर ना रफ़्तार के साथ ना केवल खुद को बदला है बल्कि अपने कई नाम भी बदले हैं. कभी यह बोम बहिया बना कभी बन गया बॉम्बे, कभी कहलाया बम्बई तो कभी हो गया मुंबई. कई राजा भी सपनों के इस शहर में आए तो अपने राज के खत्म होने के साथ चले भी गए. कुछ यादें साथ ले गए तो कुछ इस शहर को यादों से भर गए.

मुंबई की एक कहानी (story of mumbai) जो काफी प्रचलित हैं वह कुछ ऐसी है कि इस शहर को एक वक्त दहेज़ में दिया गया था. जी हाँ, इस समय मुंबई का नाम बोम बहिया (Mumbai as Bom Bahiya) हुआ करता था. तो चलिए आज के इस आर्टिकल में जानते हैं रफ़्तार और सपनों के शहर का बोम बहिया से मुंबई बनने तक का सफर (history of mumbai).

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कुछ ऐसी है इसकी कहानी (Mumbai ki kahani/History of Mumbai) :

यह बात तो हममें से कई लोग जानते ही हैं कि यह शहर 7 द्विपों से बना हुआ है. यहाँ पर बसे गांवों में सबसे पहले मछुआरों का निवास था और इन्हें ही यहाँ का निवासी भी माना जाता है. मुंबई में मौर्य सम्राट अशोक (samrat ashoka) के रहने की बातें भी सुनने को मिलती है और यह भी कहते हैं कि तीसरी शताब्दी ई.पू. के दौरान वे यहाँ के शासक रहे. उनका शासन यहाँ काफी समय तक रहा.

इसके साथ ही यहाँ बालकेश्वर मंदिर भी मौजूद हैं तो वहीँ एलिफेंटा की गुफाएं भी मुंबई (mumbai) की शान में चार चांद लगा देती हैं जोकि अत्यंत ही प्राचीन हैं. इतिहासकार इनके बारे में अक्सर ही बातें करते दिखाई देते हैं. बात कुछ 1200 ई. की है जब यहाँ पर माहिम बस्ती का निवास स्थान बनना शुरू हुआ था और इसे महिकाविती कहा जाता था.

जिसके उपरांत यहाँ 1343 ई. के दौरान कुछ राजाओं ने शासन किया जोकि गुजरात के रहने वाले थे. जिसके बाद पुर्तगालियों ने यहाँ आना शुरू कर दिया और बिज़नस करना शुरू किया. 1507 ई. के दौरान यहाँ पुर्तगालियों का हमला भी हुआ और यहाँ अपना कब्ज़ा ज़माने की कोशिश की गई लेकिन वे सभी सफल नहीं हो पाए. यही नहीं मुग़ल बादशाह हुमायूं (mughal badshah humayun) ने भी मुंबई पर अपनी नजरें गढ़ा रखी थीं.

इस दौरान मुंबई पर गुजरात (Gujarat) के बहादुर शाह शासन करते थे और वे खुद भी इस बात से कुछ चिंतित थे. इसके चलते ही उन्होंने 1534 ई. के दौरान पुर्तगालियों से संधि भी की.  जिसके बाद पुर्तगालियों ने मुंबई ने बिज़नस को बढाया और धीरे-धीरे यहाँ उनकी संख्या बढ़ना भी शुरू हो गई. यह कह सकते हैं कि इस समय में मुंबई पर पुर्गालियों का कब्ज़ा हो गया.

मुंबई में अपना बिज़नस (business in mumbai) स्थापित करने के लिए उन्होंने यहाँ एक फैक्ट्री की स्थापना की. जिसमें वे चावल, तम्बाकू, कपास, रेशन आदि का बिज़नस बढाने में लग गए. वे इसे बोम बहिया कहते थे. बोम बहिया (Bom bahiya) का मतलब अच्छी खाड़ी भी होता है. लेकिन इसके बाद यहाँ ब्रिटिश हुकूमत की नजर पड़ी क्योंकि बिज़नस के लिहाज से यह काफी अच्छी जगह थी.

अंग्रेज भी यहाँ बड़े पैमाने पर बिज़नस करना चाहते थे जिसके लिए कई बार उनके और पुर्तगालियों के बीच में कुछ घटनाएँ भी घटीं. जिसके बाद पुर्तगालियों को अंग्रेजों का इरादा पता चला और उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए ना केवल यहाँ गोदाम और किला बनवाया बल्कि इसके साथ ही लोगों को काम देना भी शुरू कर दिया और रहने के लिए भी जगह देने लगे. लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य भी यहाँ अपने कदम ज़माने के लिए कोशिशे किए जा रहा था.

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अंग्रेज मुंबई को बॉम्बे कहते थे और इसे अपने अधिग्रहण में लेने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने साल 1652 के दौरान इसे खरीदने तक का प्रस्ताव दे दिया. लेकिन उनके हाथ सफलता नहीं लगी. हालाँकि पुर्तगालियों और अंग्रेजों के बीच एक विवाद जरुर खड़ा हो गया था. जिसे हल करने के लिए पुर्तगाल के राजा ने इंग्लैंड के राजा से अपनी बेटी की शादी करने का मन बनाया और साल 1661 में राजा की बेटी कैथरीन की शादी चार्ल्स द्वितीय के साथ हुई. इस शादी के बदले में पुर्तगाल ने इंग्लैंड के राजा को बहुत सारा दहेज़ भी दिया.

इस दहेज़ में ही इंग्लैंड के राजा को बम्बई भी दहेज़ (Mumbai in Dowry) में दे दी गई. इंग्लैंड के राजा ने साल 1668 के दौरान बम्बई को ईस्ट इंडिया कम्पनी को महज 10 पाउंड में पट्टे पर दिया और यही से बम्बई अंग्रेजों के अधीन हुआ और उन्होंने अपना बिज़नस करना शुरू कर दिया. जिसके बाद धीरे-धीरे यहाँ कई बदलाव होना शुरू हुआ और देखते ही देखते यहाँ लोगों को जमीन भी खरीदने की अनुमति मिलने लगी. जिसके बाद इमारतें बनने लगीं, हॉस्पिटल बने, चर्च बना और टकसाल भी बना.

साल 1670 के दौरान यहाँ कई फैक्ट्रीज बनना शुरू हुई और एक प्रिंटिंग प्रेस का निर्माण भी हुआ और कंपनी के लोगों की सुरक्षा के लिए 1500 सैनिकों को भी तैनात किया गया. आपको शायद यह बात जानकर आश्चर्य होगा कि साल 1661 में बम्बई में केवल 10 हजार लोग ही रहते थे. लेकिन यहाँ लोग काम के दौरान मिलने वाली सुविधाओं को पाने के लिए आते थे और इसके चलते ही साल 1675 तक आबादी 60 हजार तक पहुँच गई थी.

साल 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी (east India company) के द्वारा बिज़नस को बम्बई नया रूप देना था और इसे देखते हुए ही उन्होंने अपना हेड ऑफिस भी सूरत से बम्बई में स्थानांतरित कर लिया. बम्बई तीन तरफ से समद्र से घिरा हुआ है और यहाँ मुगलों का आक्रमण हुआ. इस दौरान यहाँ पुर्तगालियों, ब्रिटिश और डच लोगों का कारोबार चलता था. कई बार अंग्रेजों और मुगलों के बीच बम्बई के लिए लड़ाई भी हुई. एक बार मुगल सेना ने शहर के किले को सभी ओर से घेर लिया था. जिसके बाद समझौता हुआ और ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारी कीमत चुकाई.

यहाँ काफी कुछ होता रहा लेकिन बावजूद इसके भी बम्बई की बिज़नस की स्पीड में कभी कमी नहीं आई. साल 1853 में यहाँ पहली भारतीय रेल लाइन (first Indian Rail line) का निर्माण किया गया जोकि विक्टोरिया और थाणे को जोडती थी. जिसके उपरांत यहाँ कई निर्माण होना शुरू हुए जिनमें बॉम्बे विश्वविद्यालय (Bombay University), नगर निगम, पोस्ट ऑफिस आदि शामिल रहे. साल 1911 में जब भारत में किंग जार्ज और क्वीन मैरी का आगमन हुआ तो गेटवे ऑफ़ इंडिया बनाया गया. फिर जब आज़ादी मिली तो बम्बई को महाराष्ट की राजधानी घोषित किया गया. और आज हम जिस बॉम्बे को मुंबई के नाम पर जानते हैं उसका नाम मुम्बा देवी (Mumba Devi) के नाम पर मुंबई रखा गया.

तो दोस्तों यह ही कहानी सपनों के शहर मुंबई की (History of Mumbai).

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