दोस्तों किसी ने सच ही कहा है कि आवश्यकता ही आविष्कार के जननी है. खासकर कोरोना संकट में तो यह कहावत और भी ज्यादा चरितार्थ हो रही है. संकट की इस घड़ी में लोगों की जान बचाने के लिए नए-नए अविष्कार किए जा रहे है. आनन-फानन में देश और दुनिया के वैज्ञानिकों ने कुछ ही महीनों में कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी की वैक्सीन बनाने में भी सफलता हासिल की है.
इसके अलावा हमारे देश में जब कोरोना संकट गहराया तो हमने तेजी से जरुरी सुविधाएं जुटाने के प्रयास किए. जैसे हमारे देश में पहले पीपीई किट ना के बराबर बनती थी, लेकिन आज हम दुनिया में सबसे ज्यादा पीपीई किट बनाने वाले देशों में से एक है.
सरकार और वैज्ञानिकों के साथ हमारे देश में जमीनी-स्तर पर भी लोगों ने कोरोना संकट से लोगों की जान बचाने के लिए छोटे-छोटे प्रयास किए है, जिसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिल रहे है. ऐसी ही एक कोशिश ओडिशा स्थित बरहमपुर के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) के शोधकर्ताओं ने भी की है. संस्थान के प्रिंसिपल प्रोफेसर रजत कुमार पाणिग्रही ने शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ऑक्सीजन सिलेंडर (Oxygen Cylinder) को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ट्रॉली का निर्माण किया है.
दरअसल हमारे देश में कोरोना संकट के बीच कई जगह ऑक्सीजन का संकट भी जा रहा है. कोरोना के कारण कई मरीजों को ऑक्सीजन की जरुरत पड़ रही है. ऑक्सीजन की जरुरत पड़ने पर परिजन जैसे-तैसे ऑक्सीजन की व्यवस्था तो कर लेते हैं, लेकिन उसे मरीज तक पहुँचाने के लिए अस्पताल के अंदर नहीं जा सकते. क्यों कि ऐसा करने से वह भी संक्रमित हो सकते है. ऐसे में परिजन अस्पताल के बाहर ही ऑक्सीजन सिलेंडर (Oxygen Cylinder) रख देते है, जिसे अस्पताल के कर्मचारी उठाकर अंदर ले जाते है. ऐसा करने में समय और श्रम दोनों ही ज्यादा लगता है.
इसको देखते हुए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) के पांच सदस्यों ने मिलकर ऑक्सीजन सिलेंडर को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए एक ट्रॉली बनायीं है. इस ट्रॉली का संस्थान में बने कोविड अस्पताल के साथ-साथ शहर के अलग-अलग कोविड केयर सेंटर्स में भी हो रहा है।
औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) के सदस्यों द्वारा बनाई गई ट्रॉली की ख़ास बात यह है कि यह ट्रॉली 160 किलोग्राम से अधिक का वजन आसानी से उठा सकती है. ट्रॉली लगभग 2.7 फीट लंबी है. इस ट्रॉली में स्कूटर के पहियों का इस्तेमाल किया गया है. इस कारण यह ट्रॉली असमतल सड़कों पर भी आराम से चलती है.
दरअसल दूर-दराज के अस्पतालों में कहीं-कहीं सीमेंट और मिट्टी की असमतल जमीन होती है, ऐसे में वहां भी यह ट्रॉली काम आए, इसको देखते हुए ही इसे डिज़ाईन किया गया है. इसके अलावा ट्रॉली में एक मेटल चेन भी लगाईं गई है. ट्रॉली पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखने के बाद उसे इस मेटल चेन से बंधा जाता है. इससे ट्रॉली चलाते समय ऑक्सीजन सिलेंडर गिरने का खतरा नहीं रहता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस ऑक्सीजन सिलेंडर ट्रॉली बनाने में टीम को 4,200 रुपये का खर्च आया. हालांकि टीम के सदस्य का कहना है कि इस लागत को कम किया जा सकता है. ऑक्सीजन सिलेंडर ट्रॉली को बनाने में स्टील का उपयोग किया गया है. इसे वेल्डिंग के साथ जोड़ा गया है. पहियों को जोड़ने के लिए नट और बोल्ट का इस्तेमाल किया गया है.
संस्थान के प्रिंसिपल प्रोफेसर रजत कुमार का कहना है कि हम इसके डिजाइन और तकनीकी प्रक्रिया को फैब्रिकेटर, वेल्डर जैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों से साझा करना चाहते हैं. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे बनाकर इसका लाभ उठाए.
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