Rani Durgavati Biography – जानिए रानी दुर्गावती कौन थी?, जिसने अकबर की विशाल को सेना को हरा दिया

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Rani Durgavati Biography  – दोस्तों जब भी भारत के गौरवशाली इतिहास की बात होती हैं तो अनेक योद्धाओं का जिक्र होता हैं, जिन्होंने अपनी बहादुरी से दुश्मनों को धुल चटाई हो. भारत की इस पावन भूमि पर कई वीरों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया है. आज के इस आर्टिकल में हम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं में से एक रानी दुर्गावती के बारे में बात करेंगे. रानी दुर्गावती वह वीरांगना हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए दुश्मनों से जंग की और उन्हें धुल चटाई. रानी दुर्गावती अंत तक युद्ध के मैदान में दुश्मनों से लड़ती रही और मातृभूमि व आत्मसम्मान की रक्षा अपने प्राणों का बलिदान भी दिया.

दोस्तों रानी दुर्गावती का नाम हम सब ने सुना हैं, लेकिन देश में कम ही लोग हैं जो उनके बारे में ज्यादा जानते हैं. रानी दुर्गावती को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल भी उठते हैं. जैसे रानी दुर्गावती कौन थीं?, रानी दुर्गावती के पति का नाम क्या था?, रानी दुर्गावती की मृत्यु कैसे हुई थी? आदि. तो आज हम इस आर्टिकल में पढेंगे रानी दुर्गावती का जीवन परिचय.

रानी दुर्गावती की जीवनी (Rani Durgavati Biography)

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के किले में हुआ था. वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है. दुर्गा अष्टमी के दिन जन्म होने के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया. रानी दुर्गावती के पिता प्रसिद्ध राजपूत चंदेल सम्राट कीरत राय थे. चंदेल राजवंश क इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. चंदेल राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर  का निर्माण करवाया.

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सर्व गुण सम्पन्न

रानी दुर्गावती बचपन से ही अपने वंश की वीरतापूर्ण और साहस से भरी कहानी सुनती और पढ़ती आ रही थी. यहीं कारण है कि बचपन से ही उन्हें तीरंदाजी और तलवारबाजी का बहुत शौक था. साथ ही वह अपने पिता के साथ शेर और चीते का शिकार करने भी जाती थी. इसके अलावा रानी दुर्गावती राज्य के काम में अपने पिता का हाथ भी बटाती थी. इस तरह रानी दुर्गावती को राज्य संभालने का ज्ञान भी हो गया था.

रानी दुर्गावती का विवाह (Rani Durgavati marriage)

रानी दुर्गावती के पति का नाम राजा दलपत शाह था. दरअसल राजा दलपत शाह एक वीर और साहसी शासक थे. रानी दुर्गावती भी उनकी वीरता से प्रभावित थी और उनसे शादी करना चाहती थी, लेकिन गोंढ जाति के होने के कारण रानी दुर्गावती के पिता ने शादी से इंकार कर दिया. दूसरी तरफ दलपत शाह के पिता संग्राम शाह भी रानी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित थे और उन्हें अपने घर की बहु बनना चाहते थे. साल 1942 में राजा कीरत राय ने अपनी पुत्री रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह से करा दिया.

शेरशाह सूरी की मृत्यु

रानी दुर्गावती और राजा दलपत शाह की शादी के कारण चंदेल और गोंड राजवंश एक हो गए और जब साल 1945 में शेरशाह सूरी कालिंजर पर हमला कर दिया तो दोनों राजवंश ने मिलकर उसका सामना किया. युद्ध के दौरान ही एक बारूद के विस्फोट में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई.

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रानी दुर्गावती का बेटा

साल 1945 में ही रानी दुर्गावती ने एक बेटे को जन्म दिया. रानी दुर्गावती के बेटे का नाम वीर नारायण था. बेटे के जन्म के पांच साल बाद ही 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई. उस समय वीर नारायण बहुत छोटे थे. यहीं कारण है कि रानी दुर्गावती ने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली.

राज्य का विकास

रानी दुर्गावती के शासनकाल में उनके राज्य ने बड़ी तरक्की की. रानी दुर्गावती ने अपने राज्य में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाए. रानी दुर्गावती के शासन से प्रजा काफी खुश थी. रानी दुर्गावती ने अपनी सेना का भी कायाकल्प किया. उनकी सेना में 20,000 घुड़सवार, 1,000 युद्ध हाथी और अन्य सैनिक थे. रानी दुर्गावती के शासन करने का तरीका इतना अच्छा था कि जल्द ही इसकी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई.

बाजबहादुर की हार

रानी दुर्गावती को महिला और कमजोर समझकर साल 1956 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया. रानी दुर्गावती और बाजबहादुर की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस हमले में मालवा के सुल्तान बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ और उसकी सेना युद्ध में हार गई. साथ ही इस जीत के बाद तो रानी दुर्गावती की प्रसिद्धि कई गुना बढ़ गई.

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रानी दुर्गावती और अकबर की लडाई (Rani Durgavati and Akbar’s Battle)

साल 1962 में अकबर की सेना ने बाजबहादुर को हरा कर मालवा पर अधिकार कर लिया. इस तरह मुग़ल साम्राज्य की सीमा रानी दुर्गावती के राज्य की  सीमाओं को छूने लगी. अकबर अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था, इसके लिए अकबर ने गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाई. अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर हमला करने का आदेश दिया.

मुग़ल साम्राज्य की सेना विशाल थी और उनके पास आधुनिक अस्त्र-शत्र थे, दूसरी तरफ रानी दुर्गावती की सेना मुग़ल सेना के मुकाबले बहुत छोटी थी और उनके पास परंपरागत हथियार थे. इसके बावजूद रानी दुर्गावती ने मुगलों से युद्ध करने का निर्णय लिया. रानी दुर्गावती ने युद्ध के लिए नरई नाला घाटी क्षेत्र को चुना क्यों कि भौगोलिक स्थिति के हिसाब से यहां युद्ध करना मुगलों के लिए कठिन थी.

इसके बाद जैसे ही मुग़ल सेना ने नरई नाला घाटी क्षेत्र में प्रवेश किया रानी दुर्गावती की सेना ने उन पर हमला बोल दिया. दोनों सेना के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया. दोनों तरफ से बड़ी संख्या में सैनिक मारे जाने लगे. इस  बीच युद्ध के मैदान में रानी दुर्गावती के एक फौजदार अर्जुन दास की मृत्यु हो गई. ऐसे में अपनी सेना की मदद करने के लिए रानी दुर्गावती खुद पुरुष वेश धारण कर युद्ध करने आ पहुंची. यह रानी दुर्गावती और उनके सैनिकों की बहादुरी का ही नतीजा था कि शाम होते-होते रानी की छोटी सी सेना ने विशाल मुग़ल सेना को घाटी से खदेड़ दिया. इस तरह युद्ध में रानी दुर्गावती की विजय हुई. हालाँकि रानी दुर्गावती रात में ही मुग़ल सेना पर हमला करना चाहती थी लेकिन उनके सलाहकारों ने उनके रोक दिया.

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दूसरी तरफ अपनी हार से तिलमिलाए मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने अगले ही दिन और भी विशाल सेना व बड़ी तोपों के सांथ तैयार की और रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला बोल दिया. रानी दुर्गावती भी अपने हाथी सरमन पर सवार होकर युद्ध के मैदान में कूद पड़ी. इस युद्ध में राजकुमार वीरनारायण ने भी हिस्सा लिया. हालाँकि जब वह युद्ध में घायल हो गए तो रानी दुर्गावती ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर भिजवा दिया और रानी दुर्गावती मुगलों से युद्ध करती रही.

रानी दुर्गावती मृत्यु (Rani Durgavati Death)

युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान और दूसरा तीन उनकी गर्दन पर लगा. दो तीर लगने से रानी दुर्गावती बेहोश हो गई. जब उन्हें होश आया तब तक मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी. ऐसे में रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने, लेकिन रानी दुर्गावती को यह मंजूर नहीं था. रानी दुर्गावती को दुश्मन के हाथों मरना भी मंजूर नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने एक सैनिक से कहा कि तुम मुझे मार दो, लेकिन सैनिक ने अपनी रानी को मारने से इंकार कर दिया. ऐसे में रानी ने अपनी ही तलवार अपने सीने में मार ली और अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए बलिदान दे दिया.

रानी दुर्गावती की समाधि

इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान में मंडला और जबलपुर के बीच स्थित बरेला में रानी दुर्गावती की समाधि बनी हुई है. जहाँ आज भी लोग दर्शन के लिए जाते हैं, जिस स्थान पर उन्होंने प्राण त्याग करे.

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बलिदान दिवस

24 जून 1564, यही वह दिन था जब रानी दुर्गावती ने बलिदान दिया था. इसीलिए आज भी 24 जून को देश “बालिदान दिवस” ​​के रूप में मनाता है. साल 1983 में रानी दुर्गावती की स्मृति में मध्यप्रदेश सरकार ने जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय रखा. इसके बाद साल 1988 में भारत सरकार ने रानी दुर्गावती की शहादत को याद करते हुए उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था.

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