भारत की आजादी, विदेशी लड़की से प्यार और गांधीजी से मतभेद, जानिए सुभाष चंद्र बोस की कहानी

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Subhash Chandra Bose Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में बात करेंगे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस सच्चे देशभक्त और वीर पुरुष थे. देश की आजादी में उनका बड़ा योगदान है. सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया था. उस समय सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिए गए ‘जय हिन्द’ और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा’ जैसे नारे खूब प्रचलित हुए थे. सुभाष चंद्र बोस को लोग प्यार से नेताजी कहकर बुलाते थे.

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम सुभाष चंद्र बोस की कहानी (subhash chandra bose story), सुभाष चंद्र बोस के कार्य (Subhas Chandra Bose Works), सुभाष चंद्र बोस के नारों (Subhash Chandra Bose slogans), सुभाष चंद्र बोस के परिवार (Subhas Chandra Bose Family) के बारे में बात करेंगे. साथ ही जानेंगे कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई? (How did Subhash Chandra Bose die) और सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का रहस्य (Subhash Chandra Bose death mystery) क्या है? तो चलिए शुरू करते है सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय.

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सुभाष चंद्र बोस जीवनी (Subhash Chandra Bose Biography)

दोस्तों सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 सन 1897 में उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था. सुभाष चंद्र बोस के पिता (Subhash Chandra Bose Father) के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था. जानकीनाथ बोस उस समय के एक प्रसिद्द और जाने-माने वकील थे. सुभाष चंद्र बोस की माता (Subhash Chandra Bose Mother) की माता का नाम प्रभावती देवी था. जानकीनाथ और प्रभावती देवी की कुल 14 संतान थी, जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे. सुभाष चंद्र बोस उनके 9वें संतान थे.

सुभाष चंद्र बोस शिक्षा (Subhash Chandra Bose Education)

सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थे. सुभाष चंद्र बोस स्कूली शिक्षा से लेकर स्नातक की शिक्षा तक, हमेशा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. उन्होंने कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्तानक की शिक्षा हासिल की. सुभाष चंद्र बोस उस समय सेना में जाना चाहते थे, लेकिन उनकी आँखों में खराबी होने के कारण सेना ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया.

सुभाष चंद्र बोस करियर (Subhash Chandra Bose Career)

साल 1919 में सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड चले गए और वहां उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए तैयारी की. साल 2020 में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और चौथा स्थान हासिल किया. इस तरह सुभाष चंद्र बोस एक आईसीएस अधिकारी बन गए.

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में हुए शामिल

सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के अनुयायी थे. जब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो वह व्यथित हो उठे. उन्होंने देश को आजाद कराने की ठान ली. ऐसे में उनके लिए अंग्रेजों की गुलामी करना मुश्किल था. यही कारण है कि साल 1921 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और महात्मा गाँधी के संपर्क में आने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.

पूर्ण स्वराज

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद सुभाष चंद्र बोस जल्द ही कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए. 1928 में जब साइमन कमीशन आया ने कांग्रेस के नेताओं ने उसका पुरजोर विरोध किया. उसी साल कोलकाता में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत को ‘डोमिनियन स्टेटस’ देने के लिए एक साल का समय दिया गया. उस समय महात्मा गाँधी पूर्ण स्वराज की मांग के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जवाहर लाल नेहरु और सुभाष चंद्र बोस ने पूरे जोर से पूर्ण स्वराज की मांग उठाई.

भारत आने पर प्रतिबंध

साल 1930 में सुभाष चंद्र बोस को ‘सिविल डिसओबिडेंस आन्दोलन’ में भाग लेने के लिए जेल भेज दिया गया. साल 1931 में उनकी रिहाई जरुर हुए, लेकिन ‘बंगाल अधिनियम’ के तहत उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया. हालाँकि बाद में उनके ख़राब स्वास्थ्य को देखते हुए एक साल बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस को यूरोप भेज दिया गया और उनके भारत आने पर रोक लगा दी गई. लेकिन इसके बावजूद सुभाष चंद्र बोस भारत आए, जिस कारण उन्हें एक साल के लिए फिर से जेल भेज दिया गया.

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कांग्रेस अध्यक्ष बने सुभाष चंद्र बोस

साल 1937 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 7 राज्यों में अपनी सरकार बनाई. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस को रिहा कर दिया गया. साल 1938 में सुभाष चंद्र बोस को पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद साल 1939 में  उन्हें दोबारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. इस चुनाव के दौरान महात्मा गाँधी ने पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन किया था, लेकिन इसके बावजूद 203 मतों से सुभाष चुनाव जीत गए और कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

कांग्रेस से दिया इस्तीफा

दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को 6 महीने के भीतर देश छोड़ने के अल्टीमेटम दे दिया. सुभाष चंद्र बोस के इस फैसले का महात्मा गाँधी सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने विरोध किया. जिसके जवाब में सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने ‘फॉरवर्ड ब्लाक’ की स्थापना की और द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों द्वारा भारतीय संसाधनों का उपयोग करने के खिलाफ आन्दोलन चलाया. इस आन्दोलन को लोगों का इतना समर्थन मिला कि ब्रिटिश हुकूमत भी सुभाष चंद्र बोस से डर गई और उन्हें कोलकाता में नजरबंद कर दिया. हालांकि सुभाष चंद्र बोस वहां से बच निकले और अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी चले गए.

आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना

उन दिनों जर्मनी और जापान दोनों ही देश ब्रिटेन के घोर विरोधी थे. जर्मनी जाने के बाद सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात वहां हिटलर से हुई. वह अपनी पत्नी के साथ बर्लिन में ही रहने लगे. साल 1943 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से सिंगापुर आ गए. इसके बाद एक जापानी पनडुब्बी ने सुभाष चंद्र बोस को इंडोनेशिया के पादांग बन्दरगाह तक पहुँचाया. पूर्वी एशिया में आने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने रास बिहारी बोस से मुलाकात की और भारतीय स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व संभाला.  21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार´बनाई थी. सुभाष चंद्र बोस खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री बने. इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी. आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती किया था. इसके बाद ही सुभाष चंद्र बोस को नेताजी कहा जाने लगा.

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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा

आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के बाद सुभाष चंद्र बोस ने पूर्वी एशिया में रहने वाले भारतीयों से आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने और आर्थिक मदद करने की अपील की. इसी दौरान उन्होंने नारा दिया था कि, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा.’ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही सुभाष चंद्र बोस ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण कर दिया. ‘दिल्ली चलो´का नारा देते हुए सुभाष चंद्र बोस आगे बढे और उनकी सेना ने ब्रिटिश हुकूमत को हराकर अंदमान और निकोबार द्वीप को आजाद करा लिया.

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु (Subhash Chandra Bose death)

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और जर्मनी के हार के कारण आजाद हिन्द फ़ौज का सपना पूरा नहीं हो सका. ऐसे में सुभाष चंद्र बोस ने रूस से मदद मांगने का निश्चय किया. इसके लिए सुभाष चंद्र बोस ने 18 अगस्त 1945 को हविया जहाज से रूस जाने के लिए उड़ान भरी. इस सफ़र के दौरान सुभाष चंद्र बोस लापता हो गए. कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को उनका विमान ताईवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी.

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का रहस्य (Subhash Chandra Bose death mystery)

सुभाष चंद्र की मृत्यु आज भी विवाद का विषय है. आज भी उनकी मौत का रहस्य बना हुआ है. जिस विमान दुर्घटना को उनकी मौत की वजह बताया जाता है, उसका आज तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है. भारत सरकार ने सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बारे में पता लगाने के लिए 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में आयोग बनाया था. इस आयोग को ताइवान सरकार ने बताया था कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था. अब सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई थी? यह आज भी एक बड़ा रहस्य है.

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सुभाष चंद्र बोस की पत्नी (subhash chandra bose wife)

अब सुभाष चंद्र बोस की निजी जिंदगी के बारे में बात करते है. सुभाष चंद्र बोस के परिवार (Subhas Chandra Bose Family) की बात करे तो उनके परिवार में उनकी पत्नी और एक बेटी थी. दरअसल साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए हुए थे. वहां उनकी मुलाकात एक ऑस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल से हुई. दोनों के बीच जल्द ही प्यार का रिश्ता बन गया. साल 1942 में सुभाष चंद्र बोस और एमिली शेंकल ने हिन्दू रीति-रिवाज से शादी कर ली. उसी साल एमिली शेंकल ने एक बेटी को जन्म दिया. सुभाष चंद्र बोस ने अपनी बेटी (subhash chandra bose daughter) का नाम अनिता बोस रखा.

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