जातीय जनगणना क्या है?, जातीय जनगणना के फायदे और नुकसान क्या है?

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what is caste census – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जातीय जनगणना (caste census) के बारे में बात करेंगे. यह एक ऐसा मुद्दा हैं, जो देश में समय-समय पर नेताओं द्वारा उठाया जाता है. देश में कई नेता ऐसे हैं, जो चाहते हैं कि देश में जाति जनगणना हो. यह भी देखा गया है कि ज्यादातर जातीय जनगणना की बात अक्सर विपक्ष के द्वारा की जाती है, लेकिन जब वही पार्टी सत्ता में आती है तो इस मुद्दे से किनारा कर लेती है.

आज इस आर्टिकल के जरिए हम जानेंगे कि जातीय जनगणना क्या है? (what is caste census), जातीय जनगणना को लेकर राजनीति (politics over caste census) क्यों हो रही है?, देश में आखिरी बार जातीय जनगणना कब हुई थी? (When was caste census held), जातीय जनगणना के क्या फायदे है? (What are advantages of caste census) और जातीय जनगणना के क्या नुकसान है? (What are disadvantages of caste census)

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जातीय जनगणना क्या है? (what is caste census)

जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में हर 10 साल में जनगणना की जाती है. इसे हमें देश की आबादी के बारे में सटीक जानकारी मिलती है. कई नेताओं की मांग है कि जब देश में जनगणना की जाए तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए. इससे हमें देश की आबादी के बारे में तो पता चलेगा ही, साथ ही इस बात के जानकारी भी मिलेगी कि देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है? सीधे शब्दों में कहे तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना कहलाता है.

आखिरी बार जातीय जनगणना कब हुई थी? (When was caste census held)

भारत में आखिरी बार जातीय जनगणना साल 1931 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुई थी. आजाद भारत में कभी भी जातीय जनगणना नहीं हुई है. हालाँकि जातीय जनगणना एक ऐसी मांग है, जिसे समय-समय पर कई नेताओं द्वारा उठाया जा चुका है. वैसे देखा जाए तो साल 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए गए. इसके अलावा साल 2011 में यूपीए के शासनकाल में भी जातीय जनगणना हुई थी, लेकिन रिपोर्ट में कमियां बता कर उसे जारी ही नहीं किया गया था.

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जातीय जनगणना के क्या फायदे है? (What are advantages of caste census)

अगर बात करे जातीय जनगणना के फायदों के बारे में तो बता दे कि इसको लेकर नेताओं के अपने-अपने तर्क है. जातीय जनगणना की मांग करने वाले कुछ नेताओं का कहना है कि जातीय जनगणना से हमें यह पता चल सकेगा कि देश में कौन जाति अभी भी पिछड़ेपन की शिकार है. यह आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है. इसके अलावा यह भी तर्क दिया जाता है कि जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक का पता चल पाएगा. इससे उन जातियों के लिए विकास की योजनाएं बनाने में आसानी होगी.

जातीय जनगणना के क्या नुकसान है? (What are disadvantages of caste census)

देश में ऐसे भी लोग हैं जो चाहते हैं कि देश में जातीय जनगणना नहीं होना चाहिए. उनका मानना है कि जातीय जनगणना से देश को कोई तरह के नुकसान हो सकते है. जैसे यदि किसी समाज को पता चलेगा कि देश में उनकी संख्या घट रही हैं तो उस समाज के लोग अपनी संख्या बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन अपनाना छोड़ सकते हैं. इससे देश की आबादी में तेजी से इजाफा होगा. इसके अलावा जातीय जनगणना से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का खतरा भी रहता है. साल 1951 में भी तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने यही बात कहकर जातीय जनगणना के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.

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जातीय जनगणना का राजनीतिक खेल (Political game of caste census)

दोस्तों अब हम बात करेंगे जातीय जनगणना के पीछे चल रहे राजनीतिक खेल की. साल 2010 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में जातिगत जनगणना की मांग की थी. लेकिन अब सरकार में आने के बाद भाजपा सरकार जातीय जनगणना से पीछे हटती दिखाई दे रही है. इसके अलावा कांग्रेस सरकार ने भी साल 2011 में शरद पवार, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के दबाव में जातीय जनगणना करवाई जरूर थी, लेकिन उसके आंकड़े ही जारी नहीं किए.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों का जातीय जनगणना को लेकर एक सा रुख नजर आता है. हालांकि इसके पीछे कुछ राजनीतिक वजह भी है. दरअसल भाजपा की राजनीति हिंदुत्व के मुद्दे पर टिकी है. भाजपा के हिंदुत्व का मतलब है पूरा हिन्दू समाज. दूसरी तरफ कई प्रदेशों में क्षेत्रीय साल जाति की राजनीति करते है. ऐसे में जातीय जनगणना से हिन्दू समाज जाति में विभाजित हो जाता है तो इसका फायदा क्षेत्रीय दलों को होगा और भाजपा को बड़ा नुकसान होगा.

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भाजपा और कांग्रेस दोनों ही देश की बड़ी पार्टियाँ है और उनका लगभग पूरे देश में वर्चस्व है. इनके वोटर किसी खास जाति के नहीं है. इसके उलट देश में कई ऐसी पार्टियां है जो किसी खास जाति की राजनीति ही करती है. ऐसे में जातीय जनगणना से देश में जाति की राजनीति जोर पकड़ सकती है. इससे क्षेत्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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