संतरा बेचने वाले से लेकर पद्मश्री से सम्मानित होने तक, जानिए हरेकाला हजब्बा की कहानी

Harekala Hajabba Biography - Wiki, Bio, Story, Padma Shri, Award

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Harekala Hajabba Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्म्मानित हरेकाला हजब्बा के बारे में बात करेंगे. दोस्तों हरेकाला हजब्बा एक ऐसा नाम है, जिसके बारे में पहले बहुत कम लोग जानते थे, लेकिन उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों के कारण भारत सरकार ने हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री से सम्म्मानित किया था. इसके बाद पूरे देश के लोगों ने हरेकाला हजब्बा के नेक कामों के बारे में जाना और उनकी प्रशंसा भी की.

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि हरेकाला हजब्बा कौन है? (Who is Harekala Hajabba), हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री क्यों दिया गया? (Why was Harekala Hajabba given Padma Shri) और हरेकाला हजब्बा की कहानी (harekala hajabba story) क्या है? तो चलिए शुरू करते है हरेकाला हजब्बा का जीवन परिचय.

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हरेकाला हजब्बा जीवनी (Harekala Hajabba Biography)

दोस्तों हरेकाला हजब्बा का जन्म कर्नाटक के न्यू पापडू के गरीब ग्रामीण इलाके में हुआ था. हरेकाला हजब्बा का जन्म एक बेहद निर्धन परिवार में हुआ था.

मात्र 6 साल की उम्र में ही हरेकाला हजब्बा अपने परिवार की मदद करने के लिए अपनी मां के साथ बीड़ी बनाने का काम करने लगे थे.

एक बेहद गरीब परिवार में जन्म होने के कारण हरेकाला हजब्बा कभी स्कूल नहीं जा पाए. शिक्षा की कमी के कारण उन्हें जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसलिए वह निरक्षर होते हुए भी शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझते थे.

बड़े होने के बाद हरेकाला हजब्बा ने संतरे बेचना शुरू कर दिया. इससे वह रोजाना लगभग 150 रूपए की कमाई करते थे. संतरे बेचकर हरेकाला हजब्बा जैसे-तैसे अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे.

एक बार एक विदेशी जोड़ा हरेकाला हजब्बा के पास संतरे लेने के लिए आया. उस जोड़े ने हरेकाला हजब्बा से फलों का दाम पूछा. लेकिन अंग्रेजी ना आने के कारण हरेकाला हजब्बा उन्हें संतरे का दाम नहीं समझा पाया. हरेकाला हजब्बा के अनुसार उस समय उन्होंने खुद को असहाय महसूस किया और प्रण लिया कि वह अपने गाँव के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ करेंगे ताकि आगे किसी बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े.

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उस समय हरेकाला हजब्बा के पास रहने के लिए खुद का घर तक नहीं था, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी सारी मेहनत की कमाई लगाकर साल 1999 में एक मस्जिद में छोटे से स्कूल की शुरुआत की. शुरुआत में कुछ ही बच्चे स्कूल आते थे, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी.

साल 2004 तक हरेकाला हजब्बा ने और पैसे इकट्ठे किए और स्कूल के लिए एक छोटी सी जमीन खरीदी. हालांकि सारी जमा पूंजी लगाने के बाद वह सिर्फ जमीन ही खरीद सके. उनके पास स्कूल बनवाने के भी पैसे नहीं थे. इसके लिए उन्होंने नेताओं और धनवान लोगों से मदद मांगी.

कई लोगों ने हरेकाला हजब्बा की मदद की तो कई लोगों ने उन्हें दूर से ही दुत्कार दिया. हालांकि थोड़ा-थोड़ा पैसा जोड़कर और लोगों से मदद लेकर हरेकाला हजब्बा ने साल 2004 में ‘दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत उच्च प्राथमिक विद्यालय‘ शुरू किया. बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में 4 शिक्षक थे. आगे चलकर सरकार की तरफ से भी हरेकाला हजब्बा को मदद मिली.

प्राथमिक विद्यालय के रूप में शुरू हुआ उनका स्कूल आगे चलकर 1 एकड़ से अधिक भूमि क्षेत्र में खड़े एक माध्यमिक विद्यालय के रूप में विकसित हुआ. हरेकाला हजब्बा का सपना है कि आगे चलकर वह अपने गांव में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की स्थापना कर पाए.

हरेकाला हजब्बा भले ही खुद कभी स्कूल ना जाए पाए, लेकिन उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और अपना सबकुछ बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया.

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हरेकाला हजब्बा को मिले सम्मान (Harekala Hajabba Award)

सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक इस्मत पजीर ने हजब्बा के जीवन पर ‘हरेकला हजब्बारा जीवन चरित्र´ नाम से एक किताब प्रकाशित की है.

मैंगलोर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में हजब्बा के जीवन इतिहास को शामिल किया गया है.

नवंबर 2012 में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन ने ‘अनपढ़ फल-विक्रेता का भारतीय शिक्षा सपना’ शीर्षक के साथ हजब्बा पर एक लेख प्रकाशित किया था.

सीएनएन आईबीएन और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा हरेकाला हजब्बा को ‘रियल हीरोज’ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

कन्नड़ भाषा के एक प्रमुख समाचार पत्र, कन्नड़ प्रभा द्वारा हरेकाला हजब्बा को पर्सन ऑफ द ईयर नामित किया गया था.

भारत सरकार ने साल 2020 में हरेकाला हजब्बा को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित करने के लिए चुना था. हालांकि कोरोना के कारण उन्हें यह सम्मान साल 2021 में दिया गया.

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