कौन थे बॉक्सर डिंको सिंह ? भारत को दिलाया था मुक्केबाजी में गोल्ड मेडल

0

भारत देश को एशियाई गेम्स में गोल्ड मेडल दिलवाने वाले पूर्व बॉक्सर डिंको सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं. डिंको सिंह का निधन महज 41 साल की उम्र में हुआ. उन्होंने केवल एशियाई गेम्स ही नहीं बल्कि कई जगहों पर देश का नाम रोशन किया है.

क्या आप जानते हैं कौन थे डिंको सिंह ? क्या आप जानते हैं डिंको सिंह की बायोग्राफी के बारे में ? डिंको सिंह का खेलों में योगदान कैसा रहा ? यदि नहीं तो चलिए हम बताते हैं आपको विस्तार से :

कौन थे डिंको सिंह ?

डिंग्को सिंह का जन्म 1 जनवरी 1979 को मणिपुर में हुआ था. डिंको सिंह एक इंडियन बॉक्सर यानि भारतीय मुक्केबाज थे. उन्होंने देश का नाम कई बात रोशन किया था. बॉक्सर डिंको सिंह को साल 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक भी मिला था, जिसे पाकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था.

कोरोना संकट में आगे आए श्रीनिवास बी वी और उनकी टीम, सोशल मीडिया के जरिए लोगों की कर रहे मदद

डिंको सिंह मणिपुर के एक छोटे से गांव के रहने वाले थे. उनका जन्म भी काफी गरीबी के साथ ही हुआ. वे एक गरीब परिवार में जन्मे थे और इस कारण ही वे गरीबी और मुश्किलों को बचपन से ही काफी अच्छे से समझते थे.

उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत से ही कई विषम परिस्थितियों का सामना किया. यहाँ तक कि डिंको सिंह का पालन पोषण भी एक अनाथालय में हुआ था.

डिंको सिंह कैसे बने बॉक्सर ?

यह उस समय की बात है जब भारतीय खेल प्राधिकरण ने एक स्पेशल स्पोर्ट्स स्कीम की शुरुआत की थी. इस दौरान इस योजना के प्रशिक्षकों के द्वारा डिंको सिंह को देखा गया और उनकी प्रतिभा को पहचाना गया. इस योजना के मेजर ओ.पी. भाटिया की निगरानी के तहत ही डिंको सिंह को प्रशिक्षित भी किया गया था.

मेजर ओ पी भाटिया को ही बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण की टीम शाखा का कार्यकारी निदेशक भी बनाया गया था. साल 1989 में जब डिंको सिंह की उम्र महज 10 साल थी तब भी उनकी प्रतिभा सामने आने लगी थी. जिसके बाद उनकी मेहनत, लगन और कार्य कुशलता के चलते उन्होंने साल 1989 में अम्बाला में जूनियर राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप को अपने नाम किया था.

डिंको सिंह को यह उपलब्द्धि मिलने के साथ ही लोगों के मन में उनकी छवि बनना शुरू हो गई थी. उनके परफॉरमेंस को देखते हुए चयनकर्ताओं और प्रशिक्षकों ने भी उनपर ध्यान देना शुरू किया. और भारत के लिए उन्हें एक बॉक्सर के रूप में देखा जाने लगा.

Kalpana Saroj Story – 2 रुपये रोज कमाने वाली ने खड़ा किया 700 करोड़ का कारोबार

साल 1997 के दौरान पहली बार डिंको सिंह ने अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी के क्षेत्र में कदम रखा था. इस साल के दौरान बैंकॉक और थाईलैंड में उन्होंने किंग्स कप में भी जीत को अपने नाम किया और एक बार खुद को फिर से साबित किया. इस टूर्नामेंट में डिंको सिंह को जीत तो मिली ही लेकिन इसके साथ ही उन्हें इस प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी घोषित किया गया था.

जब साल 1998 के दौरान बैंकाक एशियाई गेम्स में भारतीय मुक्केबाजी टीम ने हिस्सा लिया था तो उन्हें इस खेल के चयनित किया गया. किसी को भी इस दौरान यह उम्मीद नहीं थी कि वे भारत का नाम वहां रोशन कर सकेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि बैंकाक के लिए उडान भरने के 2 घंटे पहले तक तो डिंको सिंह को इस बारे में कुछ पता भी नहीं था.

हालाँकि डिंको सिंह की प्रतिभा रंग लाइ और साल 1998 के बैंकॉक एशियाई खेलों में डिंको सिंह ने बॉक्सिंग के 54 किलो के बेंटमवेट वर्ग में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया और भारत का नाम रोशन करने के साथ ही इतिहास भी बना दिया.

डिंको सिंह का गोल्ड मेडल का सफर कैसा था ?

डिंको सिंह ने बैंकाक में यह गोल्ड मेडल जीतने के लिए सेमी फाइनल में थाईलैंड के एक अच्छे मुक्केबाज वोंग प्राजेस सोंटाया को हराया था. यह कारनामा किसी को भी करने की उम्मीद डिंको से नहीं थी लेकिन ऐसा कर उन्होंने सभी को खुद पर यकीन करने के लिए मजबूर कर दिया.

उस समय की बात करें तो वोंग विश्व के तीसरे नंबर के मुक्केबाज माने जाते थे. उन्हें हराना डिंको सिंह के लिए काफी लकी साबित हुआ. इस कारनामे के बाद से ही देशभर में डिंको सिंह का नाम चमकने लगा.

जानिए कौन है दत्तात्रेय होसबोले, बने RSS के सरकार्यवाह

साल  1998 के दौरान बैंकाक एशियाई गेम्स में बॉक्सिंग के दौरान फाइनल मुकाबले में डिंग्को का सामना उज़बेकिस्तान के प्रसिद्ध मुक्केबाज तैमूर तुल्याकोव से हुआ था. इस समय तैमूर का स्थान विश्व में पाचवें नंबर के मुक्केबाज के तौर पर लिया जाता था.

डिंको इस दौरान 51 किलोवर्ग से 54 किलोवर्ग की श्रेणी में पहुंच चुके थे. इस कारण उनकी जीत को लेकर कयास लगाना शुरू हो गया था. यहाँ भी डिंको सिंह ने अपना कौशल दिलाया और तैमूर को लड़ाई के चौथे राउंड के साथ ही मुकाबले को भी अलविदा कहना पड़ा.

डिंको सिंह को मिले पुरस्कार और सम्मान : 

डिंको सिंह को साल 1998 में अर्जुन पुरस्कार भी दिया गया था. जबकि साल 2013 में डिंको सिंह को पद्मश्री अवार्ड ने भी नवाजा गया था.

Leave A Reply

Your email address will not be published.