दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम उत्तरप्रदेश की दो बहनों के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने अपने इकलौते भाई की जान बचाने के लिए अपने लीवर का आधा हिस्सा अपने भाई को दे दिया. दो बहनों और भाई के इस प्रेम की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रही है. लोग भाई के प्रति बहनों के इस प्यार की भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे हैं. तो चलिए शुरू करते हा और जानते है कि पूरी बात क्या है?
दरअसल यह कहानी है उत्तरप्रदेश के बदायूं में रहने वाले अक्षत गुप्ता और उनकी दो बहनों नेहा गुप्ता (29) और प्रेरणा गुप्ता (22) के बारे में. हुआ यह कि 14 मई 2021 को अक्षत गुप्ता की तबीयत अचानक ख़राब हो गई. शुरुआत में लगा कि अक्षत को पीलिया हो गया है. इसके कुछ दिनों बाद जब अक्षत की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसे बरेली के एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया. वहां से डॉक्टर ने अक्षत को हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया.
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8 जून को राजेश गुप्ता अपने बेटे अक्षत गुप्ता को लेकर दिल्ली गए और वहां लिवर विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाया. इसके बाद जब वह मेदांता हॉस्पिटल गए तो डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि आपके बेटे अक्षत का लिवर फेल हो चुका है. अक्षत की जान बचाने के लिए नया लिवर ट्रांसप्लांट करना होगा. इसमें समस्या यह थी कि 2 से 3 दिन के अंदर ही नया लिवर ट्रांसप्लांट करना होगा वरना अक्षत की जान को खतरा काफी बढ़ जाएगा. उस समय अक्षत का वजन 93 किलोग्राम था. उसके पेट में पानी भरने और सूजन आने की वजह से तकलीफ बढ़ती जा रही थी.
लिवर ट्रांसप्लांट के लिए समय कम होने से कैडेबल डोनर के लिए समय नहीं था. ऐसे में एक ही रास्ता था कि लाइन डोनर के जरिए अक्षत की जान बचाई जाए. लाइन डोनर के तहत परिवार के सदस्य ही लीवर डोनेट कर सकते है. ऐसी स्थिति में अक्षत की दोनों बहने नेहा गुप्ता और प्रेरणा गुप्ता ने अपने भाई को लीवर देने का फैसला किया.
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यहाँ एक बड़ी समस्या यह थी कि सफल ट्रांसप्लांट के लिए लीवर का वजन मरीज के शरीर के वजन का 0.8% से 1% होना चाहिए. दूसरी तरफ अक्षत की बहनों का वजन कम था. ऐसे में किसी एक बहन का लीवर लेने पर वह उसका वजन 0.5 से 0.55% होता. ऐसे में दोनों बहनों ने अपने लीवर का आधा-आधा हिस्सा अक्षत को देने का फैसला किया.
12 अगस्त 2012 को मेदांता अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट विभाग की टीम ने दोनों बहनों के लीवर का आधा-आधा हिस्सा लेकर एक नया लीवर बनाया और उसे ट्रांसप्लांट किया. यह सर्जरी करीब 15 घंटे तक चली. सर्जरी के बाद करीब एक सप्ताह तक डॉक्टरों की टीम ने करीब से तीनों लोगों की स्वास्थ्य पर करीब से नजर रखी. हालाँकि तीनों भाई-बहन एक सप्ताह के बाद पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं.
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बता दे कि डॉक्टरों की टीम के लिए यह सर्जरी काफी कठिन थी. शायद यह पहली बार हुआ होगा कि भारत ही नहीं दुनिया में 14 साल के बच्चे को दो अलग- अलग डोनर के लिवर को जोड़कर एक लिवर बनाकर ट्रांसप्लांट किया गया है. इसके अलावा माता-पिता के लिए भी अपने तीनों बच्चों को एक साथ सर्जरी के लिए भेजने का फैसला काफी कठिन था.
बरहाल भाई-बहनों के आपसी प्यार और डॉक्टरों की टीम की कड़ी मेहनत के बाद तीनों भाई-बहन पूर्ण रूप से स्वस्थ हुए और अक्षत की जान बचाई जा सकी. सोशल मीडिया पर भाई और बहनों के इस प्यार की कहानी जमकर वायरल हो रही है. लोग भाई के प्रति दोनों बहनों के निश्छल प्रेम की जमकर तारीफ कर रहे हैं.