Sardar Patel Biography – उस मीटिंग की कहानी, जिसके कारण प्रधानमंत्री नहीं बन सके सरदार

Sardar Patel Biography - Education, Family, Prime Minister, Death, Death and More

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Sardar Vallabhbhai Patel Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) के बारे में बात करेंगे. सरदार वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार पटेल’ के नाम से भी जाना जाता है. देश का जो वर्तमान भौगोलिक स्वरूप है, उसमें सरदार पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका है. सरदार पटेल ने ही देश की 500 से भी अधिक रियासतों को एक करके उन्हें तिरंगे के तले लाने में सफलता हासिल की.

दोस्तों सरदार वल्लभ भाई पटेल कौन थे? (Who was Sardar Vallabhbhai Patel) यह तो हम सभी जानते ही है. आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि स्वतंत्र भारत में सरदार पटेल का सबसे बड़ा योगदान क्या था?, रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका क्या थी?, सरदार पटेल का जन्म कहां हुआ था?, लौह पुरुष की उपाधि किसने और क्यों दी?, सरदार पटेल की मौत कैसे हुई?, सरदार पटेल ने देश के लिए क्या किया?, सरदार पटेल प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन पाए? इसके अलावा भी अन्य कई चीजें है, जिनके बारे में हम इस आर्टिकल में बात करेंगे. तो चलिए शुरू करते है सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय.

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सरदार वल्लभ भाई पटेल जीवनी (Sardar Vallabhbhai Patel Biography)

दोस्तों सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर सन् 1875 को गुजरात के नडियाद नामक गाँव में हुआ था. सरदार पटेल के पिता का नाम झावर भाई थे. सरदार पटेल की माता का नाम लाड़ बाई था. सरदार पटेल की पत्नी (Sardar Patel Wife) का नाम झवेरबाई था. सरदार पटेल के बेटे (Sardar Patel son) का नाम दह्याभाई और सरदार पटेल की बेटी (Sardar Patel Daughter) का नाम मणिबेन था.

सरदार वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा (Sardar Vallabhbhai Patel Education)

सरदार पटेल का जन्म एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था. हालांकि सरदार पटेल पढ़-लिखकर एक बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते थे. उन्होंने 22 साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा पास की. सरदार पटेल बैरिस्टर बनना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने नौकरी भी की और परिवार से दूर भी रहे. 36 साल की उम्र में सरदार पटेल पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए. सरदार पटेल ने 36 माह के कोर्स को 30 माह में ही पूरा कर लिया.

सरदार वल्लभ भाई पटेल का करियर (Sardar Vallabhbhai Patel Career)

इंग्लैंड से वापस आने के बाद सरदार पटेल अहमदाबाद में एक सबसे सफल बैरिस्टर के रूप में कार्य करने लगे. सरदार पटेल का सपना था कि वह खूब पैसे कमाए और अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे. हालांकि बाद में महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर सरदार पटेल देश की आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े और साथ ही सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध भी आवाज उठाना शुरू कर दिया.

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सरदार पटेल ने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रो में शराब, छुआछूत और महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए जोर-शोर से आवाज उठाई. सरदार पटेल सामाजिक एकता के भी पुरजोर समर्थक थे. उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच एकता बनाए रखने के लिए भी काफी संघर्ष किया.

साल 1917 में महात्मा गाँधी के कहने पर सरदार पटेल ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए कर के भुगतान के विरोध में खेड़ा, बारडोली व गुजरात के अन्य क्षेत्रों के किसानों को संगठित किया. उन्होंने किसानों से फसल ख़राब होने के बावजूद ब्रिटिश सरकार द्वारा लिए जा रहे कर के खिलाफ खड़े होने के आव्हान किया. आख़िरकार अंग्रेजी हुकूमत को किसानों के सामने झुकना पड़ा. इस सफल आन्दोलन को खेड़ा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है.

खेड़ा आन्दोलन की सफलता के बाद सरदार पटेल का नाम गुजरात के प्रभावशाली नेताओं में गिना जाने लगा. साल 1920 में सरदार पटेल को गुजरात की कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. इसके अलावा सरदार पटेल साल 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष भी बने. सरदार पटेल ने साल 1923 में ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय ध्वज फहराने पर प्रतिबंध के विरोध में नागपुर में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया.

साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बढ़ाए गए कर के विरोध में सरदार पटेल ने साइमन कमीशन के खिलाफ बारडोली में सत्याग्रह का नेतृत्व किया. इसमें किसानों ने एकजुट होकर सरकार का विरोध किया. आख़िरकार बारडोली सत्याग्रह के सामने ब्रिटिश वायसराय को झुकना पड़ा. बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद तो सरदार पटेल का नाम पूरे देश में हो गया. इस आन्दोलन की सफलता के बाद स्थानीय लोग उन्हें सरदार कहने लगे जिसके बाद लोग उन्हें सरदार पटेल के नाम से जानने लगे.

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साल 1932 में सरदार पटेल को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. इस तरह सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक बने. उस समय तक जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गाँधी और सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन सबसे बड़े नेता थे. साल 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में सरदार पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण पुलिस ने सरदार पटेल को गिरफ्तार भी कर लिया था. हालांकि साल 1945 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. देश की आजादी से एक साल पहले ही ब्रिटिश सरकार ने देश की सत्ता भारतीयों के हाथ में देने के लिए अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया. यह तय किया गया कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही देश का पहला प्रधानमंत्री होगा. उस समय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे. लेकिन गाँधी जी नेहरु को देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे. ऐसे में गाँधी जी ने मौलाना को पत्र लिखकर अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कहा.

29 अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई. इस बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाना था. आगे चलकर यही अध्यक्ष देश का अगला प्रधानमंत्री बनने वाला था. उस समय कांग्रेस की परम्परा थी कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियाँ करेगी. बैठक में 15 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल का नाम आगे किया. इसके अलावा बची तीन कमेटियों ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के आगे किया. यानि एक भी प्रांतीय कांग्रेस कमिटी ने नेहरु को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए वोट नहीं दिया.

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बीबीसी के अनुसार गाँधी जी नेहरु को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे. गांधीजी की इच्छा को देखते हुए पार्टी के महासचिव कृपलानी ने नया प्रस्ताव पारित करके नेहरु का नाम आगे कर दिया. ऐसे में अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दो दावेदार हो गए, एक नेहरु और दूसरे सरदार पटेल. लेकिन ज्यादातर प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां सरदार पटेल के पक्ष में थी. ऐसे में नेहरु तभी कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बन सकते थे जब सरदार पटेल अपना नाम वापस ले लेते.

कहा जाता है कि मीटिंग कृपलानी ने नाम वापसी की अर्जी का पत्र पटेल की तरफ बढ़ा दिया, लेकिन पटेल ने हस्ताक्षर किए बिना उस अर्जी को गाँधी जी की तरफ बढ़ा दिया. इसके बाद गाँधी जी ने नेहरु से कहा कि, ‘किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने तुम्हारा नहीं सुझाया है. तुम्हारा क्या कहना है?’ गाँधी जी को लगा कि नेहरु कहेंगे कि आप सरदार पटेल को ही मौका दे दीजिए, लेकिन नेहरु ने कुछ नहीं कहा और खामोश बैठे रहे. इसके बाद गाँधी जी वापस नाम वापसी की अर्जी का पत्र पटेल की तरफ बढ़ा दिया. इस बार सरदार पटेल ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए और इस तरह नेहरु निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए और आगे चलकर देश के पहले प्रधानमंत्री भी बने.

नेहरु की सरकार में सरदार पटेल को गृहमंत्री बनाया गया. सरदार पटेल देश के पहले गृहमंत्री बने. गृहमंत्री बनने के बाद सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत की रियासतों का राष्ट्रीय एकीकरण करके उनके एक करने की थी. सरदार पटेल ने भारत की ज्यादातर रियासतों को एक कर भी लिया था, लेकिन जम्मू कश्मीर, हैदराबाद एवं जूनागढ़ के राजा भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे. ऐसे में सरदार पटेल ने सख्ती दिखाते हुए सैन्य बल का प्रयोग किया, जिसके बाद हैदराबाद एवं जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गए. आगे चलकर जम्मू कश्मीर भी भारत का अंग बना.

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सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु (Sardar Vallabhbhai Patel Death)

साल 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या से सरदार पटेल को गहरा धक्का लगा. गाँधी की हत्या के कुछ महीनों बाद सरदार पटेल को हार्ट अटैक आया, जिससे वह कभी उबर नहीं पाए. 15 दिसम्बर 1950 को भारत माता के इस सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

सरदार पटेल को भारत रत्न

साल 1991 में भारत सरकार ने सरदार पटेल के योगदान को देखते हुए उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति

सरदार पटेल के सम्मान में गुजरात सरकार ने सरदार सरोवर डैम के निकट ‘साधू बेट’ स्थान पर सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाई. यह प्रतिमा 597 फीट ऊंची है. दुनिया में यह सबसे ज्यादा ऊंची प्रतिमा है. इसे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रतिमा को बनाने में करीब 3000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.

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