India and Pakistan Partition – दस लाख हत्या, हजारों बलात्कार और भारत-पाकिस्तान का विभाजन, जानिए पूरी कहानी

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India and Pakistan Partition – दोस्तों स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले 14 अगस्त को हमारे देश में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाया जाता है. 14 अगस्त 2021 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस दिन को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ (Partition Horrors Remembrance Day) मानाने की घोषणा की थी. यह दिवस उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में मनाया जाता है, जिनको भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण संघर्ष करना पड़ा और अपनी जान गंवानी पड़ी.

दोस्तों भारत की आजादी के साथ ही भारत का बंटवारा हुआ और लाखों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ा. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और करोड़ों लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए. वर्तमान में ज्यादातर लोग भारत-पाकिस्तान बंटवारे के कारण लोगों की कितनी तकलीफ उठानी पड़ी थी, इस बात से अनजान है.

आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि भारत का विभाजन क्यों हुआ था? (Why was India partitioned), भारत विभाजन के कारण क्या थे? (what were causes of partition of india), साथ ही जानेंगे भारत विभाजन के परिणाम (Consequences of partition of India), भारत के विभाजन में जिन्ना की भूमिका (Jinnah role in partition of India) और भारत के विभाजन में कितने लोगों की मौत (How many people died in partition of India) हुई थी? आखिर ऐसा क्या हुआ था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ (Partition Horrors Remembrance Day) मनाने की शुरुआत की.

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भारत और पाकिस्तान के बंटवारा (india and pakistan partition)

दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है साल 1920 से या कहे उससे भी बहुत पहले से. दरअसल उस समय तक भारत के लोगों के मन में देश की आजादी की भावना उफान पर आ चुकी थी. आजादी के लिए बड़ी संख्या में लोग ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़े हो गए थे. ऐसे में उस समय तक यह तय हो गया था कि भारत को जल्द ही आजादी मिल जाएगी. ऐसे में मोहम्मद अली जिन्ना को ख्याल आया कि देश की आजादी के बाद यहाँ तो हिन्दू ही सरकार बनाएंगे क्योंकि हिन्दू आबादी ज्यादा है. ऐसे में मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग से मुस्लिम राष्ट्र की मांग शुरू की. भारत के विभाजन का यह मुख्य कारण था.

1920 के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग मुस्लिम राष्ट्र के इए प्रयास करना शुरू कर दी. उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में यह बात बैठा दी कि भारत के मुख्यधारा की पार्टी कांग्रेस मुस्लिम हितों की अनदेखी कर रही है. साल 1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में अलामा इक़बाल ने पहली बार अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की थी. उस समय ज्यादातर हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के खिलाफ थे, लेकिन यह भी सच है कि वह हिन्दू और मुस्लिम के बीच फर्क को भी बनाए रखना चाहते थे.

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साल 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में यह स्पष्ट कर दिया कि देश की आजादी के बाद उन्हें एक अलग मुस्लिम राष्ट्र चाहिए. मुस्लिम लीग ने भी उनका समर्थन करते हुए कहा था कि, ‘हिन्दू और मुस्लिम दो अलग-अलग धर्म है. अलग रीति-रिवाज और संस्कृति है. ऐसे में दोनों के एक साथ रहने से राष्ट्र में और सरकारों के कार्य में अवरोध पैदा होगा.’

दूसरी तरह महात्मा गाँधी भारत के बंटवारे के खिलाफ थे. उनका विश्वास था कि हिन्दू और मुस्लिम एक साथ रह सकते है. उन्होंने इसका विरोध करते हुए कहा था कि, ‘मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं.’ इस बीच साल 1946 में मुस्लिम लीग के नेतृत्व में कोलकाता में दंगे शुरू हो गए. इन दंगों में 5000 लोग मारे गए. ऐसे में देश के सभी नेताओं पर यह दबाव बढ़ने लगा कि वह भारत के बंटवारे की बात मान जाए वरना देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में आ जाएगा.

18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया गया. इससे भारत विभाजन की प्रकिया को अंतिम रूप दिया गया. भारत विभाजन की प्रकिया को ‘3 जून प्लान’ या माउण्टबैटन योजना भी कहा जाता है. इसके साथ ही भारत की तमाम रियासतों को यह छुट भी दे दी गई कि वह भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसके साथ रहना चाहते है. ज्यादातर राज्यों ने धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुना.

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इस तरह अगस्त 1947 में देश के दो टुकड़े हो गए व भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क बन गए. भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने खिंची. कहा जाता है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे की प्रकिया को ब्रिटिश हुकूमत ने सही से अंजाम नहीं दिया. टिश हुकूमत ने पहले देश की आजादी की घोषणा की और बाद में विभाजन की घोषणा की. ऐसे में देश में शांति रखने की जिम्मेदारी दोनों देशों की नई सरकारों पर आ गई और उनके पास इसके लिए कोई अनुभव और सुविधाएं नहीं थी.

धर्म के आधार पर किए गए बंटवारे के कारण करीब डेढ़ करोड़ लोगों को अपने घर, गाँव और ज़मीन से बेदखल होना पड़ा. उन्हें दूसरी जगह जाकर वापस से अपनी जिन्दगी शुरू करना पड़ी. लाखों हिंदू और सिख परिवारों को अपनी सम्पत्ति पाकिस्तान में छोड़कर भारत आना पड़ा जबकि भारत के लाखों मुस्लिमों को अपनी सम्पत्ति छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा.

यह सब भी अगर शांति से हो जाता तो अच्छी बात होती, लेकिन बंटवारे के साथ ही दोनों देशों में दंगे फसाद शुरू हो गए. जो लोग एक देश से दूसरे देश जा रहे थे उन पर भी हमले होने शुरू हो गए. हज़ारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और कम उम्र लड़कियों का अपहरण किया गया. इस बंटवारे में दोनों तरफ से लगभग दस लाख लोग मारे गए थे. करोड़ो लोग बेघर हो गए.

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भारत-पाकिस्तान के बीच संपत्ति का बंटवारा

लोगों के बीच बंटवारे के साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच संपत्ति का बंटवारा करना भी बड़ी चुनौती थी. माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रूपए देने के लिए कहा था. इसी बीच पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. ऐसे में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने फ़िलहाल पाकिस्तान को यह राशी न देने का निर्णय लिया, लेकिन महात्मा गाँधी को यह पसंद नहीं आया. विकिपीडिया के अनुसार महात्मा गाँधी ने पाकिस्तान को यह राशी दिलवाने के लिए अनशन शुरू कर दिया. महात्मा गाँधी के अनशन के कारण भारत सरकार दबाव में आ गई और भारत के हितों के विपरीत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपए देने का निर्णय किया. कहा जाता है कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को देखते हुए ही उनकी हत्या करने का निर्णय किया था.

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