जानिए तीनों कृषि कानून क्या थे? और किसानों क्यों कर रहे थे कृषि कानूनों का विरोध

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what is kisan bill – आज के इस आर्टिकल में हम कृषि कानून 2020 के बारे में बात करेंगे. यह एक ऐसा बिल है जिसको लेकर किसानों ने पूरे देश में विरोध किया था. किसानों के हठ के आगे आखिरकार मोदी सरकार को झुकना पड़ा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर 2021 को तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया था. तो चलिए जानते है कि आखिर कृषि कानून (what is farm law) 2020 क्या था? आखिर क्यों किसान कृषि कानून 2020 का विरोध कर रहे थे? किसान विरोध प्रदर्शन के कारण क्या था?

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1. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020

इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने और उसकी कीमतों को नियंत्रित रखना था। लेकिन केंद्र सरकार के नए कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान था। केंद्र सरकार का दावा था कि ऐसा करने से बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा।

किसान क्यों कर रहे थे विरोध

किसान संगठनों का कहना था कि केंद्र सरकार के इस बिल से किसानों को नहीं बल्कि पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। नए बिल के अनुसार सरकार सिर्फ अति-असाधारण परिस्थितियों जैसे अकाल, युद्ध में ही वस्तुओं की सप्लाई पर नियंत्रण लगाएंगी।

2. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020

इस कानून का मुख्य उद्देश्य था कि किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के अलावा भी अपनी फसल कहीं भी बेच सके। केंद्र सरकार का कहना था कि इस नए कानून से किसानों को मंडी से बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिलेगी। किसान दूसरे राज्य में जाकर भी अपनी फसल बेच सकेगा। इसके अलावा किसानों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होगी।

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किसान क्यों कर रहे थे विरोध

इस कानून को लेकर किसानों का कहना था कि केंद्र सरकार ने बिल में यह स्पष्ट नहीं किया है कि मंडी से बाहर फसल बेचने पर किसान को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। किसानों को डर था कि फसल उत्पादन ज्यादा होने पर व्यापारी किसानों से मंडियों के बाहर ही कम कीमत पर फसल खरीदेंगे।

3. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020

इस कानून का मुख्य उद्देश्य था कि किसान फसल उगाने से पहले ही व्यापारी से समझौता कर सके। इस समझौते में फसल की कीमत और उसकी गुणवत्ता जैसी बातों को शामिल किया गया था। इसके तहत व्यापारी को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान करना होगा और बाकी का पैसा 30 दिन के अंदर करना होगा। साथ ही खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी भी व्यापारी की होगी।

किसान क्यों कर रहे थे विरोध

किसानों का कहना था कि सरकार ने भले ही फसल का भंडारण करने की अनुमति दे दी हो, लेकिन किसानों के पास फसल का भंडारण करने की व्यवस्था ही नहीं है जबकि व्यापारियों के पास फसल का भंडारण करने की व्यवस्था होती है। ऐसे में फसल की कीमत तय करने का अधिकार बड़े व्यापारियों या कंपनियों के पास आ जाएगा और किसानों की भूमिका ना के बराबर हो जाएगी।

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4. किसानों की मांगे क्या थी

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून के विरोध में किसान पिछले कई दिनों से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। किसानों का कहना था कि जब तक सरकार उनकी मांगे नहीं मान लेती तब तक विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। किसानों की सरकार से कुछ मुख्य मांगे कुछ इस तरह थी।

  1. किसानों की केंद्र सरकार से पहली मांग थी कि वह कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर लाए गए तीनों बिलों को रद्द कर दे और उनकी जगह नए कानून लाए। नए कानून लाने से पहले सरकार किसानों से बात करें और उनकी मांगों को नए बिल में शामिल करे।
  2. किसानों की दूसरी मांग थी कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार एक विधेयक लेकर आए, जिसके जरिए किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि MSP और कन्वेंशनल फूड ग्रेन ​खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा।
  3. केंद्र सरकार द्वारा लाए कृषि बिल के अलावा किसान बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध प्रदर्शन कर रहे है। केंद्र सरकार बिजली कानून 2003 की जगह बिजली (संशोधित) बिल 2020 लेकर आई है। किसान संगठन इसका भी विरोध कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि सरकार इस बिल के जरिए केंद्र सरकार बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण करने की कोशिश कर रही है। ऐसा करने से किसानों को बिजली पर मिल रही सब्सिडी और फ्री बिजली की सुविधा खत्म हो जाएगी। साथ ही बिजली का निजीकरण होने से महंगी बिजली मिलने की संभावना भी बनी रहेगी।
  4. किसानों एक मांग यह भी है कि पंजाब में पराली जलाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसानों को रिहा किया जाए। दरअसल एक प्रावधान के अनुसार पराली जलाने पर किसान को पांच साल तक की जेल और एक करोड़ रुपए का जुर्माना हो सकता है।

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5. उत्तर भारत में ही क्यों हो रहा था किसानों का विरोध प्रदर्शन?

यहां सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए कृषि बिल का विरोध सिर्फ उत्तर भारत में ही क्यों हो रहा था जबकि किसानों की समस्या हर जगह एक जैसी है। इसका कारण यह है कि केंद्र और राज्य की सरकारें किसानों से एपीएमसी के अंतर्गत जो उत्पादन खरीदती हैं वो पूरे देश का औसत 10 प्रतिशत ही होता है। बाकि 90 प्रतिशत किसान अपना उत्पादन खुले बाजार में बेचने के लिए मजबूर है।

इसके उलट पंजाब में स्थिति बिलकुल विपरीत है। पंजाब में 90 प्रतिशत किसानों से उनका उत्पादन सरकारें एपीएमसी की मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लेती है। इससे 10 प्रतिशत किसान ही अपना उत्पादन खुले बाजार में बेचते है। इस समय पूरे देश में लगभग 6,000 एपीएमसी में से 33 फीसदी अकेले पंजाब में ही हैं।

ऐसे में यहां के किसानों को गेहूं और चावल के दाम मध्यप्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों से ज्यादा मिलते है। यहीं कारण है कि केंद्र सरकार के नए बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में देखा जा रहा है। किसानों को डर है कि अगर वह एपीएमसी के सिस्टम से बाहर जा कर अपना माल बेचेंगे तो प्राइवेट व्यापारी उनका शोषण करेंगे।

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6. MSP क्या है (What is MSP)

दरअसल किसानों के हितों की रक्षा के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि (MSP) की व्यवस्था शुरू की गई थी। इस व्यवस्था के तहत अगर बाजार में किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिलता है तो सरकार किसानों से उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है। इससे किसानों को नुकसान से बचाया जाता है। किसी भी फसल की MSP पूरे देश में एक ही होती है। इसके तहत अभी 23 फसलों की ख़रीद की जा रही है। इसमें गेहूँ, ज्वार, बाजरा, धान, मक्का, मूंगफली, सोयाबीन, मूंग, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं।

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