जानिए देश के पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे की कहानी…

Acharya Vinoba Bhave Biography - Wiki, Bio, Born, Movement, Story, Died and More

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Acharya Vinoba Bhave Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम देश के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सेवकों में एक रहे आचार्य विनोबा भावे (Acharya Vinoba Bhave) के बारे में बात करेंगे. महात्मा गाँधी के अनुयायी रहे आचार्य विनोबा भावे ने पूरी जिंदगी सत्य और अहिंसा की लड़ाई लड़ी और गरीबों व बेसहारा का सहारा बने. हालांकि आज देश में कई लोग ऐसे हैं, जो आचार्य विनोबा भावे के बारे में जानते नहीं है.

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आचार्य विनोबा भावे कौन थे? (Who was Acharya Vinoba Bhave), आचार्य विनोबा भावे का जन्म किस राज्य में हुआ? (In which state was Acharya Vinoba Bhave born), आचार्य विनोबा भावे ने नागरी को क्या नाम दिया?, भूदान आंदोलन का सर्वप्रथम प्रारंभ किस राज्य में हुआ था?, विनोबा भावे की मृत्यु कैसे हुई? (How did Vinoba Bhave died) इसके अलावा भी अन्य चीजों के बारे में बात करेंगे. तो चलिए शुरू करते है आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय.

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आचार्य विनोबा भावे जीवनी (Acharya Vinoba Bhave Biography)

दोस्तों आचार्य विनोबा भावे का असली नाम (Real name of Acharya Vinoba Bhave) विनायक नरहरि भावे है. आचार्य भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) के गागोडे में एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था. आचार्य भावे के पिता का नाम नरहरि शंभू राव था. आचार्य भावे की माता का नाम रुक्मिणी देवी था. आचार्य भावे के तीन छोटे भाई-बहन भी थे.

आचार्य विनोबा भावे शिक्षा (Acharya Vinoba Bhave Education)

आचार्य विनोबा भावे बचपन से पढ़ने में काफी अच्छे थे. गणित उनका पसंदीदा विषय था. आचार्य विनोबा भावे ने गुजरात के बड़ौदा में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है. पढ़ाई के अलावा आचार्य भावे की अध्यात्म में गहरी रूचि थी. उनकी माता एक धार्मिक महिला थी, इसका भी उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा.

आजादी की लड़ाई में योगदान (Contribution to freedom struggle)

साल 1916 में आचार्य विनोबा भावे अहमदाबाद में महात्मा गांधी के कोचरब आश्रम चले गए. इस दौरान उन्होंनेस्कूल-कॉलेज छोड़ दिया, लेकिन गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल सहित राजनीति व अर्थशास्त्र का अध्ययन किया. आचार्य भावे, महात्मा गाँधी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु मानते थे. दूसरी तरफ महात्मा गाँधी भी आचार्य भावे से काफी स्नेह रखते थे.

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आचार्य भावे ने साल 1920 में असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. आंदोलन में आचार्य भावे की सक्रियता से महात्मा गाँधी भी काफी प्रभावित हुए. साल 1921 में महात्मा गाँधी ने आचार्य भावे को अपने वर्धा आश्रम को संभालने की जिम्मेदारी दी. इस आश्रम की जिम्मेदारी संभालने के दौरान आचार्य भावे ने मराठी पत्रिका ‘महाराष्ट्र धर्म’ की शुरुआत की. इस पत्रिका के जरिए आचार्य भावे लोगों तक वेद और उपनिषद के संदेश पहुंचाते थे.

धीरे-धीरे देश की आजादी के लिए आचार्य भावे भी महात्मा गाँधी के साथ कदम से कदम मिलकर चलने लगे. आचार्य भावे के बढ़ते कद को देखकर अंग्रेजी हुकूमत भी उनसे घबराने लगी. अंग्रेजी हुकूमत ने शुरुआत में उन्हें 6 महीने के लिए जेल भेजा, लेकिन इसके बाद भी वह अंग्रेजी हुकूमत के सामने नहीं झुके तो उन्हें अलग-अलग समय पर कई बार जेल भेजा गया. हालांकि आचार्य भावे का संघर्ष जेल में भी जारी रहता और वह जेल में लोगों को ‘गीता’ पढ़ाया करते थे.

11 अक्टूबर 1940 को महात्मा गाँधी ने आचार्य विनोबा भावे को अंग्रेजों को खिलाफ आवाज़ उठाने वाला पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही घोषित किया. इस दौरान आचार्य भावे को पांच साल की जेल की सजा भी हुई थी. साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देश के कई हिस्सों में अशांति का माहौल था. उस समय वामपंथियों की अगुवाई में भूमिहीन किसानों का हिंसक आन्दोलन शुरू हो गया. आचार्य भावे शुरू से ही महात्मा गाँधी के अनुयायी थे, इसलिए वह हिंसक आन्दोलन को रोकना चाहते थे.

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18 अप्रैल 1951 को आचार्य भावे किसानों से मिलने के लिए नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे. यहाँ किसानों ने आचार्य भावे के सामने मांग रखी कि यदि उनके समुदाय को 40 परिवारों को 80 एकड़ जमीन मिल जाए तो वह अपना गुजारा आसानी से कर सकेगे और अपना आन्दोलन भी खत्म कर लेंगे. ऐसे में आचार्य भावे ने जमीदारों से बात की और इसका असर यह हुआ कि एक जमीदार ने आचार्य भावे से प्रभावित होकर अपनी 100 एकड़ जमीन किसानों को दे दी.

इस घटना से आचार्य भावे भी काफी प्रभावित हुए और अगले कुछ सालों में उन्होंने देश में 58 हजार किलोमीटर से भी अधिक सफ़र तय किया. उन्होंने बड़े किसानों को जमीन दान देने के लिए प्रेरित किया. इसका असर यह हुआ कि देश के करीब 13 लाख किसानों को 44 लाख एकड़ जमीन मिली. इससे लाखों किसानों की जिंदगी में खुशहाली आ गई और उनका गुजर-बसर आसान हो गया. उनके इस कार्य की दुनियाभर में प्रशंसा हुई.

साल 1958 में आचार्य भावे को उनके कामों के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वह यह पुरुस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे. आचार्य भावे ने साल 1959 में महिला सशक्तिकरण के लिए ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की शुरुआत की. साथ ही उन्होंने गोहत्या और हरिजनों के मैला ढोने पर प्रतिबंध को लेकर भी काफी काम किया. आचार्य भावे के जीवन पर भगवद् गीता का काफी प्रभाव था. 15 नवंबर 1982 को आचार्य विनोबा भावे ने लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया. साल 1983 में आचार्य भावे को मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था.

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