Akhara Story, History Information in Hindi –
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bhartiya Akhara Parishad) को लेकर हमेशा से ही बातें सामने आती रहती हैं. अखाड़ों का संबंध हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति से है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के बारे में बात करें तो इसका इतिहास आज का नहीं बल्कि दशकों पुराना है. अखाड़ों को लेकर हिन्दुओं (Hindu Akhara) की मान्यता भी अलग-अलग होती है.
वैसे तो हम में से कई लोग अखाड़ों से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं लेकिन कई लोग आज भी ऐसे हैं जिन्हें अखाड़ों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. यदि आप भी उनमें से एक हैं जिन्होंने अखाड़ों के बारे में जानकारी नहीं है तो आज का आर्टिकल आपके लिए ही है. दरअसल आज के इस आर्टिकल में हम अखाड़ा क्या होता है ? अखाड़ा कब शुरू हुआ ? और अखाड़ों के बारे में सभी बातें करने जा रहे हैं. तो चलिए शुरू करते हैं.
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क्या होता है अखाड़ा ? कैसे बने अखाड़े ? (what is Akhara ? how Akhara started ?)
दरअसल अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य (aadi shankracharya) के द्वारा की गई थी. उन्होंने 8वीं सदी के दौरान 13 अखाड़ों का निर्माण कराया था. उस समय हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए और वैदिक संस्कृति की रक्षा को ध्यान में रखते हुए अखाड़ों की शुरुआत की गई थी. ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि इस समय के दौरान भारत में बौद्ध धर्म का विस्तार बहुत ही तेजी से हो रहा था. जिसके चलते वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा पर भी संकट के बदल मंडराने लगे थे.
बौद्ध धर्म के अंतर्गत वैदिक परम्पराओं के साथ ही यज्ञ पर भी पाबंदी थी. इससे हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए नागा साधुओं की सेना की तर्ज पर अखाड़ों को शुरू किया गया. अखाड़ों में लोगों को ना केवल योग बल्कि इसके साथ ही शस्त्र चलाना भी सिखाया जाता था. योग और शस्त्र के अलावा लोगों को अध्यात्म के बारे में भी बताया जाता था. 8वीं सदी से शुरू हुए ये अखाड़े आज भी काम कर रहे हैं.
अखाड़ों की व्यवस्था कैसी होती है ?
आपको यह बात शायद नहीं पता होगी कि सभी अखाड़े नासिक कुम्भ के अलावा सभी कुम्भ मेलों में एक साथ जाते और स्नान भी करते हैं. नासिक कुम्भ (nasik kumbh) के बारे में बता दें कि वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया का निर्माण पेशवा के दौर में किया गया था और यह प्रक्रिया साल 1772 से चल रही है.
आदि शंकराचार्य के द्वारा 10 अखाड़ों की जिम्मेदारी अपने 4 शंकराचार्य पीठों को सौंपी गई है. हालाँकि इसके अलावा भी हर अखाड़े की अपनी एक अलग व्यवस्था भी होती है. इस व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए चुनाव किए जाते हैं. लेकिन इससे ऊपर एक पद होता है जोकि अखाड़ा प्रमुख का पद होता है और प्रमुख के द्वारा ही सबका संचालन किया जाता है.
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इसके साथ ही यह भी बता दें कि शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर पद को सबसे बड़ा माना जाता है. इन्हें अखाड़े का प्रमुख आचार्य भी कहा जाता है. प्रमुख के आदेश और मार्गदर्शन में ही सभी अखाड़ों का काम किया जाता है. यहाँ तक की महंत और महामंडलेश्वर के पद पर होने वाले संतों को अखाड़ों में प्रवेश भी प्रमुख के कहने पर ही दिया जाता है.
जबकि वैष्णव अखाड़ों की बात करें तो यहाँ सबसे बड़ा पद अणि महंत का होता है. जिस तरह महामंडलेश्वर होते हैं ठीक उसी तरह श्रीमहंत का भी पद होता है. सभी महंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है और ये ही अपने अखाड़ों का संचालन भी करते हैं.
अखाड़े कौन-कौन से हैं ? क्या हैं अखाड़ों के नाम ? (names of Akhara)
बताया जाता है कि शैव, वैष्णव और उदासीन अखाड़ों के सन्यासियों के कुल 13 अखाड़े मौजूद हैं. इन अखाड़ो के नाम इस प्रकार हैं : निरंजनी, जूना, महानिर्वाणी, अटल, आह्वान, आनंद, पंचाग्नि, नागपंथी गोरखनाथ, वैष्णव, उदासीन पंचायती बड़ा, उदासीन नया, निर्मल पंचायती और निर्मोही.
अखाड़ा की पहचान उसके कामों से होती है. इन कार्यों में संतों के करतब, घंटा नाद, शाही हाथी घोड़ों की सवारी से लेकर उनकी सजावट. शस्त्रों का प्रदर्शन आदि शामिल हैं. अखाड़ा संत इस बारे में कहते हैं कि वे ऐसे साधुओं का एक दल हैं जो शस्त्र चलाने में भी माहिर होते हैं. वे मानते हैं कि जो शास्त्र को नहीं मानते हैं उन लोगों को शस्त्र से मनाने के लिए ही अखाड़ों का जन्म हुआ है.
देश की स्वतंत्रता में भी अखाड़ों की काफी भागीदारी रही है. हालाँकि देश को आज़ादी मिलने के बाद अखाड़ों के द्वारा सैन्य रूप का त्याग कर दिया गया था. इसकी शुरुआत में केवल 4 अखाड़े हुआ करते थे लेकिन समय के साथ इनकी संख्या बढती चली गई और बंटवारा भी होता गया.
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कैसे दिया गया अखाड़ों को अखाड़ा नाम ?
कुछ ग्रन्थों के अनुसार अलख शब्द से अखाड़ा शब्द का निर्माण हुआ है. वहीँ कुछ अन्य तथ्य यह भी कहते हैं कि साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के कारण ही साधुओं के इन गुटों को अखाड़ा नाम दिया गया. अखाड़ा का संबंध कुश्ती से भी है. लेकिन कई जगहें ऐसी भी हैं जहाँ दांव-पेंच का इस्तेमाल ना होते हुए भी अखाड़ा शब्द का इस्तेमाल होता है. इस अखाड़ा शब्द को सबसे पहले मुगलकाल में चलन में लाया गया था.
कैसे काम करते हैं अखाड़े ? how Akhara works ?
जैसा कि हमने आपको पहले ही इस बारे में जानकर दी कि सभी अखाड़े अपने नियमों पर चलते हैं. हर अखाड़े के अपने नियम और कानून होते हैं जिनका पालन अखाड़ों के सदस्यों के द्वारा किया जाता है. जबकि यदि किसी अखाड़े के साधुओं के द्वारा कोई जुर्म किया जाता है तो उसे अखाड़ा परिषद के द्वारा सजा दी जाती है.
यदि किसी साधू के द्वारा कोई छोटी चूक होती है तो उसे कोतवाल संग गंगा नदी में 5 से लेकर 108 डुबकियाँ लगाने के लिए कहा जाता है. दुबकी लगाने के बाद भीगी अवस्था में ही वे देवस्थान पर पहुँच अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगते हैं. जिसके बाद पुजारी उन्हें प्रसाद देता है और उसे दोषमुक्त किया जाता है.
जबकि यदि कोई जुर्म बड़ा होता है तो ऐसी स्थिति में साधू को अखाड़े से ही बाहर कर दिया जाता है. अखाड़े से बाहर होने के बाद उस साधू पर भारतीय संविधान का कानून लागू होता है.