India-China War – भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम सहित जानिए पूरा इतिहास

भारत-चीन युद्ध - कारण, परिणाम, इतिहास, 1962, 1967

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत चीन युद्ध (India-China War) के बारे में बात करेंगे. हम जानेंगे कि कैसे चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया और दोस्ती का जवाब दुश्मनी के साथ दिया. भारत चीन युद्ध को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल है. जैसे – भारत चीन युद्ध क्यों हुआ था? (Why did Indo-China war happen), भारत और चीन के बीच कितने युद्ध हुए? (How many wars took place between India and China), भारत और चीन युद्ध के क्या परिणाम हुए? (What were consequences of India-China war), 1962 में चीन के पास भारत की कितनी भूमि चली गई?, भारत-चीन युद्ध के कारण क्या थे? (What were causes of India-China war) इनके अलावा भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं. इस आर्टिकल में हम इन्हीं सवालों के जवाब जानेंगे. तो चलिए शुरू करते है और जानते है भारत चीन युद्ध (India-China War) का कारण परिणाम और इतिहास (Cause, Consequence and History).

भारत और चीन युद्ध से पहले (India and China before war)

भारत साल 1947 में आजाद हुआ, वहीं साल 1949 में चीन रिपब्लिक बना. शुरुआत में भारत और चीन के बीच बड़े ही मधुर संबंध थे. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध प्रगाड़ हुए. चीन के साथ अच्छे संबंधों को देखते हुए ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता भी ठुकरा दी थी.

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भारत और चीन के बीच विवाद (dispute between India and China)

भारत और चीन के बीच शुरू से ही अपने क्षेत्र को लेकर विवाद रहा है. हालांकि दोनों देशों ने हमेशा बातचीत के जरिए इसे हल करने की कोशिश की. साल 1954 में भारत ने तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी, जिससे दोनों देशों के बीच दोस्ती गहरी हुई. लेकिन साल 1958 में जब चीन ने नेफा (आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कुछ हिस्सों को अपने मानचित्र में दिखाया तो भारत ने इसका विरोध किया.

साल 1958 में तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. चीनी सेना ने इस विद्रोह को बेरहमी से दबा दिया. ऐसे में साल 1959 में दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ भारत आ गए. भारत ने उन्हें अपने यहाँ शरण दी. इससे चीन बुरी तरह से भड़क गया. साल 1960 में जब चीन के प्रीमियर झोउ एनलाइस भारत आए तो उन्होंने भारत के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर भारत अक्साई चिन पर अपने दावे छोड़ दें तो चीन नेफा (अब अरुणांचल प्रदेश) पर अपने दावे से पीछे हट जाएगा. हालांकि भारत ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया.

भारत-चीन युद्ध के कारण (Cause of Indo-China War)

इस तरह भारत-चीन के बीच विवाद या युद्ध के तीन बड़े कारण उभरकर सामने आए.

सीमा विवाद – अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद उठता रहता है.

सड़क निर्माण – दोनों देशों के बीच सड़क निर्माण को लेकर भी साल 1959 में विवाद हुआ था.

दलाई लामा को शरण – साल 1959 में तिब्बत में विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन भड़क गया. चीन को लगा कि तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह में भारत का हाथ है.

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भारत-चीन युद्ध 1962 (Indo-China War 1962)

साल 1962 तक भारत और चीन के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया. चीन ने यह सब धोके से किया, भारत को इसके बारे में कोई अंदाजा नहीं था. यही कारण है कि चीन ने महज 4 हफ़्तों में ही नेफा (अब अरुणांचल प्रदेश) और तवांग पर कब्जा कर लिया और उसकी सेना तेजपुर, असम तक पहुंच गई.

इस बीच भारत और चीन के बीच बातचीत भी चलती रही. चीन ने भारत के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपनी सेना 20 किलोमीटर पीछे ले जाए. इसके जवाब में भारत ने कहा कि चीन पहले ही 60 किलोमीटर तक अंदर आ चुका है. ऐसे में अब भारत अपनी सेना पीछे नहीं ले जाएगा. इसके बाद चीन ने 14 नवंबर को हमले तेज कर दिए और फिर 21 नवंबर को एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर दी.

भारत और चीन युद्ध के परिणाम (Consequences of India and China War)

इस युद्ध के बाद चीन ने भारत के एक बड़े भू-भाग कर कब्जा जमा लिया. युद्ध विराम के बाद चीनी सेना नेफा (अरुणाचल प्रदेश) से हट गई, लेकिन चीनी सेना अक्साई चिन से पीछे नहीं हटी. इस युद्ध में भारत ने सिर्फ थल सेना के साथ लड़ाई की. भारत के पास लगभग 20,000 सैनिक थे, जबकि चीन के पास 80,000 सैनिक थे. इस युद्ध में भारत के 1383 जवान मारे गए, 1696 लापता हुए 548-1047 घायल हुए और 3968 युद्धबंदी बनाए गए. वहीं चीन की बात करे तो इस युद्ध में उसके 722 जवान मारे गए और 1697 घायल हुए.

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चीन से युद्ध में हार के कारण (Reasons for the defeat in the war with China)

वायु सेना का इस्तेमाल नहीं

चीन से हुए युद्ध में भारत की हार के कई कारण थे. जैसे भारत ने इस युद्ध में वायु सेना का इस्तेमाल नहीं किया. भारत को डर था कि ऐसी स्थिति में चीन भी अपनी वायु सेना का इस्तेमाल करेगा. लेकिन कई रक्षा सलाहकारों का मानना ​​है कि उस समय भारत की वायु सेना चीन की वायु सेना से मजबूत थी. उस समय चीन की वायु सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी. ऐसे में भारत ने वायु सेना का इस्तेमाल किया होता तो भारत जीत सकता था.

सरकार की लापरवाही

उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यह भ्रम था कि कुछ भी हो जाए, चीन भारत पर हमला नहीं करेगा. नेहरु को लगा कि बातचीत के जरिए मुद्दों को हल कर लिया जाएगा. इस कारण भारत ने युद्ध की तैयारी भी नहीं की थी.

संसाधनों की कमी

चीन ने पहले से ही युद्ध की तैयारी की हुई थी. उसके पास बड़ी मात्रा में सैन्य हार्डवेयर था जबकि भारतीय सेना के पास पर्याप्त संसाधनों की कमी थी.

खुफिया एजेंसियों की नाकामी

इस युद्ध में भारतीय खुफिया एजेंसी की नाकामी भी भारत की हार का एक बड़ा कारण बनकर सामने आई.

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भारत-चीन युद्ध 1967 (Indo-China War 1967)

साल 1962 के युद्ध में मिली हार का बदला भारत ने साल 1967 में लिया. हुआ यह कि साल 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध के बाद भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर को परिभाषित किया. वहीं दूसरी तरफ चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने के लिए कहा. ऐसे में दोनों देशों की सेना के बीच टकराव शुरू हो गया. चीन ने मशीन गन फायरिंग की मदद से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और भारत ने इसका जवाब दिया. भारतीय सेना ने पूरी हिम्मत से चीनी सैनिकों को जवाब दिया और उन्हें पीछे धकेल दिया. इस लड़ाई में भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे. तब भारतीय सेना के ऐसे तेवर देखकर चीन भी हैरान रह गया था.

भारत-चीन युद्ध को लेकर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल – 1962 में चीन के पास भारत की कितनी भूमि चली गई?

जवाब – इस युद्ध में चीन ने अक्साई चिन में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था.

सवाल – 1962 की लड़ाई से चीन ने भारत के किस भाग पर कब्जा कर रखा है?

जवाब – अक्साई चिन.

सवाल – भारत-चीन युद्ध 1962 के समय भारत के  रक्षा मंत्री कौन थे?

जवाब – वी के कृष्णा मेनन.

सवाल  – 1962 के युद्ध में चीन के कितने सैनिक मारे गए?

जवाब – चीन के अनुसार इस युद्ध में उनके 722 सैनिक मारे गए थे.

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