कंधार विमान अपहरण – जानिए कंधार प्लेन हाईजैक की पूरी कहानी….

Kandahar plane hijacking - Full Story, Terrorist

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कंधार प्लेन हाईजैक (kandahar plane hijack)  के बारे में. यह एक ऐसी घटना है, जो देश के इतिहास पर बदनुमा दाग की तरह है. कैसे कुछ हथियार बंद आतंकियों ने इंडियन एयरलाइंस के विमान ना सिर्फ हाईजैक कर लिया बल्कि अपने कुछ साथियों को भारत की जेल से आजाद भी करवा लिया. उस समय देश के विदेश मंत्री खुद तीन आतंकियों को भारत की जेल से निकालकर कंधार छोड़कर आए थे और देश के नागरिकों को सुरक्षित लेकर वापस भारत लौटे.

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कंधार हाईजैक की पूरी कहानी. हम जानेंगे कि कंधार प्लेन हाईजैक कब हुआ था? (When did Kandahar plane hijack happen), कंधार प्लेन हाईजैक के कारण भारत ने क्या कार्रवाई की थी और आतंकियों की मांग के बदले भारत को किन आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा. तो चलिए शुरू करते है कंधार प्लेन हाईजैक (kandahar plane hijack) की पूरी कहानी.

दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है 24 दिसंबर 1999 को. इस दिन नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट संख्या आईसी 814 ने शाम को करीब 4:30 बजे नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी. तब तक फ्लाइट मेंबर और अन्य यात्री इस बात से अनजान थे कि उनके बीच कुछ हथियार लिए आतंकवादी यात्री बनकर बैठे है. विमान में उस समय 180 लोग सवार थे, जिनमें से ज्यादातर लोग भारत के थे. कुछ यात्री ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमरीका के भी थे.

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शाम को लगभग 5 बजे जैसे ही इंडियन एयरलाइंस का विमान भारतीय सीमा में दाखिल हुआ, सभी आतंकवादी एक्टिव हो गए और बंदूक के नौक पर विमान को पाकिस्तान के लाहौर में उतारने की मांग करने लगे. हालांकि यहां विमान चालक दल के सदस्यों ने सुझबुझ दिखाई. पहला तो उन्होंने तुरंत भारत सरकार तक विमान हाईजैक होने की सुचना पहुंचा दी. दूसरा यह कि उन्होंने आतंकियों से झूठ बोल दिया कि विमान में इतना फ्यूल नहीं है कि इसे पाकिस्तान तक ले जाया जा सके. यह सिर्फ नई दिल्ली या अमृतसर तक जा सकता है. ऐसे में आतंकवादी विमान को अमृतसर लैंड करवाने के लिए मान गए. इसके अलावा चालक दल ने प्लेन की रफ़्तार को कम कर दिया ताकि विमान को अमृतसर पहुँचने में समय लगे ताकि भारत सरकार को कोई फैसला लेने में थोडा और समय मिल सके.

शाम के करीब छह बजे विमान अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा. उस समय भारत सरकार के पास मौका था कि वह कोई कार्रवाई करे, लेकिन विमान में बैठे नागरिकों की सुरक्षा को देखते हुए वह तत्काल कोई फैसला नहीं ले पाए और आतंकी विमान को अमृतसर से पाकिस्तान के लाहौर ले गए. लाहौर से दुबई होते हुए विमान अगले दिन सुबह अफ़ग़ानिस्तान के कंधार में उतरा.

उस समय अफगानिस्तान में तालिबान का राज था और कंधार पर भी उसकी ही हुकूमत थी. कंधार आने से पहले ही आतंकवादियों ने प्लेन में सवार भारतीय नागरिक रूपन कात्याल को चाकू से वार करके मार दिया. इसके अलावा दुबई में ईधन भरवाते समय 27 यात्रियों को रिहा कर दिया, जिसमें महिलाएं और बच्चे थे.

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दूसरी तरफ भारत में इस घटना को लेकर हडकंप मच गया. विमान में बैठे यात्रियों के परिजन भारत सरकार पर उनकी सुरक्षित वापसी को लेकर दबाव बनाने लगे. सरकार पर मीडिया का भी दबाव बढ़ने लगा. वहीँ आतंकियों ने भारत सरकार के सामने 36 चरमपंथी साथियों की रिहाई, 20 करोड़ अमरीकी डॉलर और एक कश्मीरी अलगाववादी के शव को सौंपे जाने की मांग की. हालांकि तालिबान के कहने पर आतंकियों ने पैसों और शव की डिमांड छोड़ दी, लेकिन आतंकी अपने साथियों की रिहाई पर अड़े रहे.

अब भारत सरकार और आतंकियों के बीच बातचीत होंगे लगीं वहीँ दूसरी तरफ तालिबान ने भारत सरकार और आतंकियों दोनों को ही जल्द समझौता करने के लिए चेतावनी दे दी. भारत सरकार चाहती तो कंधार में भी सैन्य ऑपरेशन कर सकती थी, लेकिन तालिबान ने यह कहते हुए इसकी इजाजत देने से मना कर दिया था कि कंधार में कोई खून-खराबा नहीं होगा. दूसरी तरफ तालिबान ने आतंकवादियों से भी कह दिया था कि जल्दी कोई समझौता नहीं हुआ या कोई खून-खराबा हुआ तो हम विमान पर हमला बोल देंगे. ऐसे में आतंकियों पर जल्द समझौता करने का दबाव बढ़ने लगा.

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आख़िरकार 8 दिन की बातचीत के बाद 31 दिसंबर को भारत सरकार और आतंकवादियों के बीच समझौता हुआ. इस समझौते के तहत भारत सरकार तीन आतंकवादियों जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को रिहा करेगी बदले में आतंकवादी सभी यात्रियों को छोड़ देंगे. 31 दिसंबर 1999 को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीनों आतंकवादियों को भारतीय जेलों से निकालकर कंधार पहुंचे और बदले में सभी यात्रियों को सुरक्षित वापस भारत लेकर आए.

इसके बाद तालिबान ने भी आतंकवादियों को तुरंत अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया. अपने साथियों की रिहाई के बाद आतंकवादी तुरंत अपने साथियों को लेकर एयरपोर्ट के बहार खड़ीं गाड़ियों में बैठकर भाग गए. इस दौरान वह अपनी सुरक्षा के लिए तालिबान के एक अधिकारी को भी अपने साथ ले गए. 31 दिसंबर की शाम को भारत में प्रधानमंत्री वाजपेयी देश को यात्रियों की सुरक्षित वापसी की जानकारी दी और कहा कि उनकी सरकार अपहरणकर्ताओं की मांगों को काफी हद तक कम करने में कामयाब रही है.

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इस पूरी घटना में दो बातें ऐसी हुई भारत के खिलाफ गई. पहली बात तो यह कि जब चालक दल ने अपनी सुझबुझ से विमान को अमृतसर में उतारा तब भारत सरकार की तरफ से कोई सैन्य करवाई नहीं की गई. हालांकि इसके पीछे यात्रियों की सुरक्षा एक वजह हो सकती है. क्योंकि तब सरकार को भी पता नहीं था कि विमान के अंदर कितने आतंकवादी है और उनके पास कितने और कैसे हथियार है.

दूसरी बात जो भारत के खिलाफ गई, वह यह है कि उस समय अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. अगर उस समय अफगानिस्तान में कोई लोकतांत्रिक सरकार होती थी शायद भारत सरकार थोड़ी मजबूत स्थिति में होती और सैन्य करवाई की इजाजत भी मिल गई होती.

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