Major Dhyan chand Biography – जब चुंबक के शक में तोड़ दी गई मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक

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Major Dhyan chand Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के महान हॉकी खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के बारे में बात करेंगे. दोस्तों वैसे तो मेजर ध्यानचंद आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मेजर ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक जीताया है. हॉकी में उनके योगदान को देखते हुए ही मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. इसके अलावा खेल रत्न अवार्ड भी उनके नाम पर ही दिया जाता है.

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे  मेजर ध्यानचंद के करियर (Major Dhyan Chand Careers), मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियां (Major Dhyan Chand Achievements) सहित मेजर ध्यानचंद से जुड़ी दिलचस्प चीजों के बारे में. तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय.

मेजर ध्यानचंद जीवनी (Major Dhyan chand Biography)

दोस्तों मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तरप्रदेश के इलाहबाद में हुआ था. मेजर ध्यानचंद के पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह था. मेजर ध्यानचंद की माता का नाम शारदा सिंह था. मेजर ध्यानचंद के दो भाई थे, जिसका नाम मूल सिंह और रूप सिंह था.

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मेजर ध्यानचंद शिक्षा (Major Dhyan chand Education)

मेजर ध्यानचंद ने महारानी लक्ष्मी बाई गवर्नमेंट कॉलेज से शिक्षा हासिल की है. मेजर ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे. इस कारण उनका अक्सर एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर होता रहता था. इस कारण मेजर ध्यानचंद ने कक्षा छठवीं के बाद अपनी पढाई छोड़ दी.

मेजर ध्यानचंद का करियर (Major Dhyan Chand Careers)

मेजर ध्यानचंद साल 1922 में 16 की उम्र में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सिपाही की हैसियत से भर्ती हुए. शुरुआत में मेजर ध्यानचंद की हॉकी के प्रति दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन उनकी रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी को हॉकी से बड़ा प्रेम था. उन्होंने ही मेजर ध्यानचंद को हॉकी के लिए प्रेरित किया.

जब मेजर ध्यानचंद ने हॉकी खेलना शुरू किया तो उनकी हॉकी में दिलचस्पी बढ़ने लगी. वह लगातार हॉकी की प्रैक्टिस करके अपने खेल को निखारते रहे. मेजर ध्यानचंद दिन में तो हॉकी की प्रैक्टिस करते ही थे, साथ में रात में भी वह चंद्रमा की रौशनी में हॉकी खेलते थे. बहुत कम लोग जानते होंगे कि मेजर ध्यानचंद का असली नाम ध्यानसिंह था, लेकिन चंद्रमा की रोशनी में हॉकी खेलने के कारण उनका नाम ध्यानचंद पड़ गया.

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हॉकी के कारण मेजर ध्यानचंद का सेना में प्रमोशन होता रहा. पहले उन्हें सेना में लांस नायक नियुक्त किया गया. इसके बाद उन्हें सेना में लेफ़्टिनेट बनाया गया. इसके बाद मेजर ध्यानचंद सेना में सूबेदार पद पर नियुक्त किए गए. आखिर में उन्हें सेना में मेजर बनाया गया. यही कारण है कि ध्यानचंद को मेजर ध्यानचंद के नाम से जाना जाता है.

मेजर ध्यानचंद का हॉकी करियर (Major Dhyan Chand Hockey Careers)

मेजर ध्यानचंद ने शुरुआत में नेशनल हॉकी टूर्नामेंट में खेलना शुरू किया. उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका चयन भारत की इंटरनेशनल हॉकी टीम में किया गया था. मेजर ध्यानचंद को सबसे पहले न्यूजीलैंड में होने वाले टूर्नामेंट के लिए भारतीय टीम में शामिल किया गया. इस टूर्नामेंट में भारत ने 21 मैच खेले और 18 में जीत हासिल की. इस दौरान एक मैच में भारत ने 20 गोल किए जिसमें से 10 गोल तो मेजर ध्यानचंद ने किए थे.

एम्सटर्डम ओलंपिक 1928 (Amsterdam Olympics 1928)

दोस्तों भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था. इस ओलंपिक में दुनिया ने पहली बार हॉकी महान खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद को हॉकी खेलते हुए देखा और जिसने भी उन्हें खेलते हुए देखा वह देखता ही रह गया. इस ओलंपिक में मेजर ध्यान चंद ने सर्वाधिक 14 गोल किए, वहीं भारतीय टीम ने 29 गोल किए.

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लॉस एंजेलिस ओलंपिक 1932 (Los Angeles Olympics 1932)

साल 1932 में हुए लॉस एंजेलिस ओलंपिक के बारे में कहा जाता है कि उस समय भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों के बीच गहरे मतभेद थे. हालांकि खिलाड़ियों के बीच मतभेद का असर टीम के प्रदर्शन पर नहीं पड़ा. लॉस एंजेलिस ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने लगातार दूसरा गोल्ड मेडल जीता. इस दौरान एक मैच में भारत ने मेजबान टीम को 24-1 से के बड़े अंतर से हराया. इस मैच में ध्यानचंद के छोटे भाई रूपचंद ने 10 गोल किए थे. इसके अलावा खिताबी मुकाबले में भी भारत ने 11-0 से जीत दर्ज की.

बर्लिन ओलंपिक 1936 (Berlin Olympics 1936)

यह मेजर ध्यान चंद का आखिरी ओलंपिक था. इसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया था. भारतीय हॉकी टीम ने इस ओलंपिक में लगातार तीसरा गोल्ड मेडल जीतकर मेजर ध्यान चंद को शानदार विदाई दी. बर्लिन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने 30 गोल किए. मेजर ध्यान चंद की हैट्रिक की बदौलत भारतीय टीम ने फाइनल में जर्मनी को 8-1 के बड़े अंतर से हराया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया.

हॉकी स्टीक में चुंबक

मेजर ध्यानचंद इतनी कमाल की हॉकी खेलते थे कि कई लोगों को लगता था कि कहीं उनकी हॉकी में चुंबक तो नहीं है. एक बार नीदरलैंड के खिलाफ एक मैच के दौरान मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टीक को बाकायदा तोड़कर देखा गया कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं है.

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क्रिकेट में रन की तरह करते है गोल

ऑस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर सर डोनाल्ड ब्रैडमैन ने एक बार जब मेजर ध्यानचंद को खेलते हुए देखा तो दंग रह गए. इसके बाद उन्होंने कहा था कि, ‘ध्यानचंद ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनता है.’

मेजर ध्यानचंद और हिटलर (Major Dhyan Chand and Hitler)

बर्लिन ओलंपिक के फाइनल में भारत का मुकाबला जर्मनी से था. इस मैच को देखने के लिए जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी पहुंचे थे. मैच से एक दिन पहले हुई बारिश के कारण मैदान गीला हो गया था. इस कारण मेजर ध्यानचंद अपने जूते उतारकर मैच खेलने लगे. भारत ने फाइनल मुकाबले में जर्मनी को 8-1 से मात दी. मैच में मेजर ध्यान चंद ने हैट्रिक लगाईं.

मेजर ध्यानचंद को नंगे पैसे हॉकी खेलते और गोल करते देख हिटलर भी बड़ा प्रभावित हुआ. मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को जर्मनी की ओर से खेलने का ऑफर दिया. इसके बदले उन्हें जर्मन सेना में उच्च पद देने की बात भी कही. हालांकि मेजर ध्यानचंद ने इस ऑफर को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, ‘हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं वहीं के लिए आजीवन हॉकी खेलता रहूंगा.’

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मेजर ध्यानचंद अवॉर्ड (Major Dhyan Chand Award)

भारत में मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

मेजर ध्यानचंद की शानदार हॉकी को देखते हुए ही उन्हें हॉकी का जादूगर भी कहा जाता है.

साल 1956 में मेजर ध्यानचंद को भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.

साल 2021 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड कर दिया था.

मेजर ध्यानचंद की मृत्यु (Major Dhyanchand death)

मेजर ध्यानचंद को लीवर का कैंसर हो गया था. कैंसर जैसी लंबी बीमारी के बाद 3 दिसंबर 1979 को उनका निधन हो गया था.

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