पगड़ी संभाल जट्टा – जब किसान आंदोलन के चलते ब्रिटिश हुकूमत को वापस लेने पड़े कृषि कानून

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Sardar Ajit Singh Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम सरदार अजीत सिंह (Sardar Ajit Singh) और पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन (Pagdi Sambhal Jatta Movement) के बारे में बात करेंगे. सरदार अजीत सिंह महान राष्ट्र भगत और क्रांतिकारी थे. वह शहीद भगत सिंह के चाचा थे. साथ ही उनका नाम पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के नायक के तौर पर भी लिया जाता है. सरदार अजीत सिंह की योग्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि जब वह 25 साल के थे, तब बाल गंगाधर तिलक ने उनके बारे में कहा था कि, ‘ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं.’

वहीं बात करे पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की तो बता दे कि यह अंग्रेज सरकार के खिलाफ किसानों का आन्दोलन था. अंग्रेज सरकार साल 1907 में तीन कृषि कानून लेकर आई थी, जिसका पूरे देश के किसानों ने विरोध किया था. सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में दिखाई दिया था. सरदार अजीत सिंह ने आगे बढ़कर इस आंदोलन का नेतृत्व किया. इस आन्दोलन से अंग्रेज सरकार इतना डर गई कि उन्हें तीनों कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.

तो चलिए आज इस आर्टिकल हम जानेंगे कि सरदार अजीत सिंह कौन थे? (Who was Sardar Ajit Singh?), पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन क्या था? और कैसे अजीत सिंह के आगे अंग्रेजी हुकुमत को झुकना पड़ा. तो चलिए शुरू करते है सरदार अजीत सिंह का जीवन परिचय और पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की पूरी जानकारी.

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सरदार अजीत सिंह जीवनी (Sardar Ajit Singh Biography)

दोस्तों सरदार अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी साल 1881 में पंजाब के जालंधर में हुआ था. उन्होंने जालंधर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की थी. सरदार अजीत सिंह की पत्नी का नाम हरनाम कौर था. सरदार अजीत सिंह अपने देश से बेहद प्यार करते थे. वह अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकना चाहते थे. यहीं कारण है कि अंग्रेजों ने उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया था. उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा जेल में ही बिता है.

साल 1906 में सरदार अजीत सिंह का परिचय बाल गंगाधर तिलक से हुआ. वह बाल गंगाधर तिलक से काफी प्रभावित हुए. इसके बाद सरदार अजीत सिंह ने अपने बड़े भाई और शहीद भगत सिंह के पिता किशन सिंह के साथ मिलकर भारत माता सोसाइटी की स्थापना की और अंग्रेज विरोधी किताबें छापनी शुरू कर दीं. कहा जाता है कि शहीद भगत सिंह के जीवन पर उनके चाचा सरदार अजीत सिंह का काफी प्रभाव था. सरदार अजीत सिंह ने भगत सिंह के लिए क्रांति की नींव रखने का काम किया.

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पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन (Pagdi Sambhal Jatta Movement)

दरअसल यह किसान आंदोलन अंग्रेजों के तीन कानूनों के खिलाफ था. इन कानूनों के नाम थे – पंजाब भूमि अलगाव अधिनियम 1900, पंजाब भूमि उपनिवेश अधिनियम 1906 और बारी दोआब नहर अधिनियम 1907. इन कानूनों का मकसद किसानों की जमीनों को हड़पकर बड़े साहुकारों के हाथ में देना था. इन कानूनों के कारण किसान अपनी जमीन से ना पेड़ काट सकते थे और ना ही उस जमीन पर घर या झोपड़ी बना सकते थे.

ऐसे में इन कानूनों के खिलाफ साल 1907 में लायलपुर (वर्तमान में पाकिस्तान में) में किसानों ने आन्दोलन शुरू कर दिया. इस आंदोलन का नेतृत्व सरदार अजीत सिंह कर रहे थे. आन्दोलन की इस आग में घी डालने का काम किया अंग्रेजों के भू-राजस्व और जल कर में बढ़ोतरी फैसले ने. धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे देश में फ़ैल गया.

पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन से अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह से डर गई थी. इसके कई कारण थे. सबसे पहले तो आंदोलनकारियों ने आन्दोलन के लिए जान-बुझकर लायलपुर का चयन किया. इसका कारण यह था कि पंजाब का यह हिस्सा उस समय सबसे विकसित था और यहाँ पर बड़ी संख्या में सेना से रिटायर अधिकारी और सैनिक रहते थे. ऐसे में अंग्रेजों को डर था कि विद्रोह की यह आग सेना के अंदर भी भड़क सकती है. इसके अलावा अंग्रेजो को पता था कि यह क्षेत्र सेना और पुलिस में भर्ती का गढ़ है.

इसके अलावा इस आंदोलन के कारण अंग्रेजों के मन में 1857 के विद्रोह की डरावनी यादें भी ताजा हो गई. रही सही कसर सरदार अजीत सिंह के उस भाषण ने पूरी कर दी जो उन्होंने 21 अप्रैल 1907 को दिया था. अपने भाषण ने सरदार अजीत सिंह ने कहा था कि, ‘साल 1858 में की गई घोषणा में, हमसे किए गए वादे कभी पूरे नहीं हुए. बदतर हालातों में जीने और प्लेग से मरने से अच्छा है कि अपने देश के लिए मरों. 29 करोड़ भारतीयों की तुलना में डेढ़ लाख युरोपियन कुछ भी नहीं हैं. उनके पास बंदूकें, राइफल और अन्य हथियार हैं, फिर भी हम उन्हें चंद मिनटों में खत्म कर देंगे. भगवान हमारी रक्षा करने के लिए आएंगे.’

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सरदार अजीत सिंह के इस भाषण से अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह से डर गई थी. अंग्रेजों ने पहले लाला लाजपत राय और फिर अजीत सिंह को गिरफ्तार कर बर्मा की मांडले जेल में डाल दिया. दूसरी तरफ ‘रावलपिंडी, गुजरांवाला, लाहौर’ में दंगे होने लगे. ब्रिटिश कर्मियों के साथ मारपीट हुई. कई ब्रिटिशकर्मी इतना डर गए कि उन्होंने अपने परिवारों को बॉम्बे भेज दिया. साथ ही मुल्तान मंडल में, रेल कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी. इन्हीं सब चीजों को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत को तीनों कानूनों को वापस लेना पड़ा.

वहीं सरदार अजीत सिंह को अंग्रेजों ने छह महीने की जेल के बाद छोड़ दिया. साल 1909 में अंग्रेजों के अत्याचार से बचने के लिए सरदार अजीत सिंह देश से बाहर चले गए. वह ईरान के रास्ते तुर्की, फ्रांस, स्विटजरलैंड और ब्राजील गए. इटली में उन्होंने 11,000 सैनिकों की टुकड़ी खड़ी कर दी, जिसे ‘आजाद हिंद लश्कर’ नाम दिया गया.

7 मार्च 1947 को सरदार अजीत सिंह वापस भारत लौटे. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें जर्मन जेल से रिहा कराने के लिए हस्तक्षेप किया था. हालांकि तब तक सरदार अजीत सिंह को कई भाषाओं का ज्ञान हो चुका था. 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के दिन ही सरदार अजीत सिंह ने जय हिंद कहकर इस दुनिया से विदा ली.

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