Story of Kohinoor : कैसे कुल्लूर की खदानों से निकला और लंदन पहुंचा कोहिनूर?

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कोहिनूर हीरे (Kohinoor Diamond) को लेकर कई कहानियां हम सुनते ही रहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि कभी कोहिनूर हीरा भारत की शान हुआ करता था जोकि आज लंदन की महारानी एलिजाबेथ के ताज की शान बढ़ा रहा है. आपने भी इस कोहिनूर हीरे (Kohinoor Hira) से जुड़ी हुई कई कहानियां सुनी होंगी. आज हम आपको इसी कोहिनूर के बारे में शुरुआत से लेकर अब तक के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं विस्तार से (Story of Kohinoor Diamond) .

कोहिनूर हीरे को लेकर यह कहा जाता है कृष्णा नदी (Krishna River) के पास खदानों में मिला था. यह खदानें कुल्लूर की खदानों के नाम से जानी जाती है. फिलहाल यह खजाने भारत देश के आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) राज्य में स्थित है. बात साल 1850 की है इस दौरान हमारे देश में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर ने इसके बारे में यह पता लगाया यहां के लोग ऐसा मानते थे कि यह हीरा महाभारत (Mahabharat) काल के समय का है. महाभारत काल का समय यानी करीब 50000 वर्ष पूर्व. कहां जाता है की महाभारत काल में यह हीरा पाया गया था और ऐसे ही सम्मान तक मणि कहा गया था. उस समय के हिसाब से इस हीरे का वजन 793 5/8 (5 बटा 8) कैरेट का बताया गया था.

जबकि इतिहास के पन्नों को खंगाले तो यह जानकारी सामने आती है इस हीरे का पहली बार जिक्र बाबरनामा (Babarnama) में किया गया था. बतादे बाबरनामा बाबर की आत्मकथा (Babar Life story) है. इसके अंतर्गत यह कहा गया था बाबर को उसके प्यारे बेटे हुमायूं (humayun) ने यह कॉफी के रूप में दिया था. हुमायूं ने इस दौरान जब हीरे की कीमत का पता लगाना चाहा बाबर (Babar) ने उसे कहा इस हीरे की कीमत एक लट्ठ होती है. यानी किसी के हाथ में भी भारी लट्ठ होगा यह हीरा (Diamond) उसी का होगा.

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बाबरनामा में यह भी लिखा गया पानीपत की लड़ाई (Panipat ki Ladai) हुई थी तब हुमायूं ने सुल्तान इब्राहिम लोदी (Sultan Ibrahim Lodi) को हराया था. उसे हराने के साथ ही आगरा किले सारी दौलत को हुमायूं ने छीन लिया था. इस दौरान ग्वालियर के राजा ने हुमायूं को एक हीरा तोहफे में दिया था. उन्होंने इस हीरे को अपने पिता को दे दिया.

जब 17 वी सदी के दौरान बाबर के पढ़ पोते यानी शाहजहां (Shahjahan) ने अपने लिए एक विशाल सिंहासन बनवाया था, इस सिंहासन को बनाने के लिए सोने का उपयोग किया गया, इसके साथ ही इसमें कई जवाहरात भी लगाए गए. इस सिंहासन को बनाने में 7 वर्ष का समय लगा था और इसे सैयद गिलानी नाम के शिल्पकार ने बनाया था. इस सिंहासन को तख़्त-ए-मुरस्सा (takht-e-murassa) नाम दिया गया. हालांकि कुछ समय बाद यह सिंहासन मयूर सिंहासन (mayur sinhasan) के नाम से प्रचलित हुआ. इस सिंहासन में बाबर के द्वारा लाए गए हीरे को भी लगाया गया.

हीरे के लगने से सिंहासन की कीमत कई गुना बढ़ गई जिसके बाद इसे देखने के लिए दुनिया भर से जौहरी आने लगे. इन सब में से ही वेनिस शहर से होर्टेंसो बोर्जिया (Hortense Borgia) भी इस सिंहासन को देखने आया. औरंगजेब ने इस हीरे की चमक बढ़ाने के लिए इसे होर्टेंसो बोर्जिया को दिया. लेकिन उसने अपने काम में कुछ गड़बड़ की हीरे के कई टुकड़े हो गए. अब यह हीरा 793 कैरेट की जगह केवल 186 कैरेट का ही बचा. इस हरकत के लिए बोर्जिया से ₹10000 जुर्माना लिया गया.

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साल 1739 में दिल्ली पर शाह नादिर (Shah Nadir) का कब्जा हुआ. नादिर के लोग दिल्ली में कत्लेआम मचा रहे थे और इसे रोकने के लिए मुगल सुल्तान मोहम्मद शाह ने उसे ढाई लाख जवाहर दिए जिनमें यह हीरा भी शामिल था. शाह नादिर ने इस हीरे को कोह-ए-नूर (Kohinoor) यानी रोशनी का पर्वत कहा. जब नादिर की हत्या हुई तब इस हीरे पर अहमद शाह दुर्रानी का कब्ज़ा हुआ. दुर्रानी के बेटे का नाम शाह शुजा था. शाह जब लाहौर जेल में था तब महाराजा रणजीत सिंह ने जब तक कोहिनूर नहीं ले लिया तब तक उसके परिवार को भूखा और प्यासा रखा.

लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब सिखों को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने हराया और कोहिनूर हीरे पर अपना कब्जा जमाया. इस दौरान भारत का वायसराय जिसका नाम डलहौजी था वह इसे अपनी आस्तीन में सिलवा कर लंदन ले गया और उसने इस हीरे को ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स को तोहफे में दे दिया. हीरे की कीमत काफी अधिक थी इसलिए कंपनी के काम में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया. और कंपनी ने इस हीरे को रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) को तोहफे में दे दिया. यह दिन था 29 मार्च 1849. चूँकि हीरे की कीमत काफी अधिक थी इसलिए रानी ने उसे अपने ताज में जड़वा लिया. तब से लेकर अब तक यह हीरा रानी के ताज की शान बढ़ा रहा है.

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इस हीरे को रानी के ताज में लगाया गया क्योंकि उस समय रानी के हाथ में सबसे अधिक ताकत हुआ करती थी. और बाबर ने भी तो कहा ही था यह हीरा उसी का होगा जिसके हाथ में सबसे बड़ा लट्ठ होगा. यह बात रानी के ताज में इस हीरे के जाने के साथ ही साबित भी हो गई. तो दोस्तों यह सी कोहिनूर की कहानी (Story of Kohinoor) .

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