जानिए प्रत्यर्पण संधि क्या है?, भारत की कितने देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है?

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मेहुल चौकसी, विजय माल्या, नीरव मोदी, क्रिकेट बुकी संजीव चावला, म्यूजिक डायरेक्टर नदीम सैफी, उद्योगपति धर्मा जयंती तेजा. दोस्तों यह कुछ ऐसे नाम हैं, जो भारत में अपराध करके विदेश भाग गए है. भारत सरकार इन भगोड़ों को वापस लाने की कोशिश में जुटी हुई है. हालांकि ऐसे लोगों को वापस भारत लाना आसान नहीं होता है. भगोड़े अपराधियों को वापस भारत लाने के लिए लंबी क़ानूनी प्रकिया से गुजरना पड़ता है.

हमारे देश से भागे हुए भगोड़े अपराधियों को वापस भारत लाया जा सकता है या नहीं, या फिर उसे कितने समय में लाया जा सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपराधी किस देश में जाकर छुपा हुआ है. अगर उस देश के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि (extradition treaty) नहीं है तो फिर उस अपराधी को भारत वापस लाना मुश्किल होता है या फिर बहुत समय लगता है. इसके उलट अगर उस देश के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि (extradition treaty) है तो उस अपराधी को भारत लाना थोड़ा कम मुश्किल होता है. हालाँकि उसके लिए भी एक लंबी क़ानूनी प्रक्रिया से गुजरना होता है.

ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर प्रत्यर्पण संधि क्या होती है? (what is extradition treaty), प्रत्यर्पण संधि का अर्थ क्या है?, भारत की कितने देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है? (extradition treaty of india with other countries). तो चलिए दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम इन्हीं सवालों का जवाब जानेंगे.

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प्रत्यर्पण संधि क्या है (what is extradition treaty)

दोस्तों प्रत्यर्पण का मतलब होता है वापस करना या वापस लौटाना. जैसे अगर हमारे पास कोई ऐसी वस्तु है, जिसके असली मालिक हम नहीं बल्कि कोई और है. तो उस वस्तु को उसके असली मालिक को लौटाना ही प्रत्यर्पण कहलाता है.

इसी तरह जब किसी देश का कोई व्यक्ति अपराध करने के बाद दूसरे देश भाग जाता है तो दूसरा देश उस व्यक्ति को पकड़कर वापस उस देश को सौंप देता है, जहाँ से वह आया था. इसे ही प्रत्यर्पण संधि होती है. प्रत्यर्पण संधि दो देशों के बीच होती है. यह संधि करते समय सरकार को प्रत्यर्पण संधि को देश की संसद से मंजूरी दिलवानी होती है. इसके अलावा किसी भी अपराधी का प्रत्यर्पण करने से पहले अपने देश के कानूनों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है.

अब हम प्रत्यर्पण संधि को और थोड़ा विस्तार से समझते है. जैसे कि मान लो भारत ने ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि की हो और उसके बाद कोई अपराधी भारत से भागकर ब्रिटेन पहुंच गया हो और उसने वहां की नागरिकता ले ली हो. तो ऐसा नहीं होता है कि भारत सरकार ने प्रत्यर्पण संधि के तहत ब्रिटेन की सरकार से अपराधी को वापस भारत भेजने की मांग की हो और ब्रिटेन की सरकार उसे पकड़कर वापस भारत को दे ही देगी.

इसमें सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह व्यक्ति भारत में जो अपराध करके आया है, उसे ब्रिटेन में भी अपराध माना जाता है या नहीं. जैसे मान लो कि किसी व्यक्ति ने भारत में कोई विवादित कार्टून बना दिया हो जो कि अपराध की श्रेणी में आता है और सजा से बचने के लिए वह ब्रिटेन भाग गया हो. वहीं दूसरी तरह ब्रिटेन में वह कार्टून बनाना अपराध की श्रेणी में ना आता हो, तो फिर ब्रिटेन की सरकार उस अपराधी को भारत को सौंपने से मना कर सकती है.

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अगर उस व्यक्ति ने ऐसा अपराध किया हो जो दोनों देशों में अपराध माना जाता हो, तो भी ब्रिटेन की सरकार उसे पकड़कर वापस भारत को आसानी से नहीं देगी. सबसे पहले तो वह अपराधी वहां की स्थानीय अदालत में अपने प्रत्यर्पण को चुनौती दे सकता है. इसके लिए वह इस बात का हवाला दे सकता है कि भारत की जेल सही नहीं या वहां उसकी जान को खतरा है या इसके अलावा भी बहुत कुछ. ऐसे में भारत सरकार की ओर से वहां की कोर्ट को भरोसा दिलाना होता है कि अपराधी के लिए अच्छी जेल और सुरक्षा का बंदोबस्त किया जाएगा.

अगर स्थानीय अदालत उस अपराधी के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे देती है तो अपराधी फिर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है. ऐसे में बहुत समय गुजर जाता है. जब सभी कोर्ट से प्रत्यर्पण को मंजूरी मिल जाती है तो फिर मामला उस देश के गृहमंत्रालय के पास चला जाता है. वहां से मंजूरी मिलने के बाद भी प्रत्यर्पण हो पाता है. यहीं कारण है कि प्रत्यर्पण संधि होने के बावजूद अपराधी को वापस अपने देश लाने में लंबा समय लगता है.

इसके अलावा प्रत्यर्पण में देरी का कारण देशों के अपने निजी हित भी होते हैं. जैसे मान लो कोई अपराधी भारत में हजारों करोड़ का घोटाला करके किसी देश में छिप गया हो. अब उस अपराधी के पास पैसे है तो वह जिस देश में छिपा है, वहां इनवेस्ट करेगा. इससे उस देश को फायदा होना स्वाभाविक है. ऐसे में वह देश उसके प्रत्यर्पण में देरी करता है या नहीं करता है.

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भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि (extradition treaty between india and uk)

लोगों के मन में सबसे ज्यादा सवाल भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि को लेकर ही है. इसका कारण है कि भारतीय उद्योगपति विजय माल्या और नीरव मोदी ब्रिटेन में ही छिपे बैठे है. आपको बता दे कि भारत और ब्रिटेन के बीच 22 सितंबर 1992 को प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर हुए है. हालाँकि प्रत्यर्पण संधि को हुए भले ही इतने साल बीत चुके हैं, लेकिन भारत अब तक ब्रिटेन से महज एक ही अपराधी को वापस भारत ला सका है.

2002 के गुजरात दंगों के मामले में समीर भाई वीनू भाई पटेल को 18 अक्तूबर 2016 को ब्रिटेन से भारत लाया गया था जो ब्रिटेन से प्रत्यर्पण के मामले में मिली एक मात्र सफलता है. इसका कारण भी यह है कि पटेल ने प्रत्यर्पण का विरोध करने की बजाय अपनी सहमती दे दी थी. इसके अलावा भारत अब तक तीन लोगों को प्रत्यर्पण संधि के तहत ब्रिटेन को सौंप चुका है.

अब कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि प्रत्यर्पण संधि के तहत अब तक कितने लोगों को भारत लाया जा चुका है. तो बता दे कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2002 से साल 2019 तक अलग-अलग देशों से 62 भगोड़े अपराधियों का प्रत्यर्पण कर भारत वापस लाया जा चुका है.

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भारत की कितने देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है? (extradition treaty of india with other countries)

अब हम बात करेंगे कि भारत की किन देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है. तो बता दे कि भारत अब तक लगभग 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि कर चुका है. इन देशों के नाम है :- संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, मलेशिया, मॉरीशस, अफगानिस्तान, अजरबेजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेलारूस, बेल्जियम, भूटान, ब्राजील, बुल्गारिया, चिली, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इजरायल, कजाकिस्तान, कुवैत, मैक्सिको, मंगोलिया, नेपाल, नीदरलैंड्स, ओमान, फिलिपींस, पोलैंड, पुर्तगाल, कोरिया गणराज्य, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्विट्जरलैंड, ताजिकिस्तान, थाइलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, युक्रेन, उज्बेकिस्तान, वियतनाम, क्रोएशिया, फिजी, इटली, पापुआ न्यू गिनी, पेरू, स्वीडन, सिंगापुर, श्रीलंका और तंजानिया.

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