What is privatization – जानिए निजीकरण क्या है? इसके उद्देश्य, लाभ और हानि…

What is privatization - Advantages, Disadvantages, Effects, Aim, History

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What is privatization – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम निजीकरण (Privatization) के बारे में बात करेंगे. यह एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में पिछले कुछ सालों में देश में काफी बहस हो रही है. सबसे ज्यादा विवाद रेलवे और बैंकों के निजीकरण को लेकर रहा है. निजीकरण के खिलाफ कई बार कर्मचारी विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं. निजीकरण को लेकर लोगों के अपने-अपने तर्क है. कोई इसे सही बता रहा है तो कोई इसे गलत. हालांकि देश में कई लोग ऐसे भी है, जिन्हें निजीकरण और इससे होने वाले फायदों या नुकसान के बारे में पता नहीं है.

दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि निजीकरण क्या है? (What is privatization), निजीकरण के उद्देश्य क्या है? (What is the purpose of privatization), निजीकरण से क्या फायदा है? (What is the benefit of privatization), निजीकरण के नुकसान क्या है? (What are the disadvantages of privatization) इसके अलावा हम निजीकरण के कारण, निजीकरण के प्रभाव (effects of privatization) और भारत में निजीकरण के इतिहास (History of Privatization in India) के बारे में भी बात करेंगे. तो चलिए शुरू करते है.

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निजीकरण क्या है? (What is privatization)

दोस्तों निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है. यानि किसी सरकारी संस्था या इकाइयों को निजी क्षेत्र मे स्थानांतरित करने की प्रकिया को ही निजीकरण कहते है. इसमें संस्था का स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ में चला जाता है.

निजीकरण कैसे होता है? (How does privatization happen?)

निजीकरण मुख्य रूप से दो तरीकों से किया जाता है. पहला है विनिवेश (Disinvestment) और दूसरा है स्वामित्व का हस्तांतरण (Transfer of Ownership). इसके अलावा एक चीज और है अविनियमन (Deregulation).

विनिवेश (Disinvestment)

इसका मतलब होता है कि सरकार योजनाबद्ध तरीके से अपनी इकाईयों में से कुछ हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचती है. किसी सरकारी कंपनी की परफॉरमेंस को सुधारने के लिये सरकार अपनी शेयर के कुछ हिस्से या पूरे हिस्से को निजी क्षेत्रों के हाथों बेचती है. NTPC, एयर इंडिया, ONGC जैसे कई कंपनी है जिनमें सरकार द्वारा विनिवेश किया गया है.

स्वामित्व का हस्तांतरण (Transfer of Ownership)

इसका मतलब है कि सरकार द्वारा एकमुश्त अपनी इकाई को निजी क्षेत्र के हाथों में बेचना. इसके बाद सरकारी कम्पनी पर सरकार का किसी प्रकार का स्वामित्व और प्रबंधन नहीं रह जाता है. सरकार का उस कम्पनी में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है.

अविनियमन (Deregulation)

यह एक ऐसी प्रकिया है, जिसमें सरकार स्वामित्व अपने हाथों मे रखती है किन्तु रख रखाव और प्रबंधन निजी क्षेत्र के हवाले कर देती है. परमाणु ऊर्जा, रेल, रक्षा से जुड़े क्षेत्र ऐसे है, जहाँ सरकार निजी क्षेत्र को कुछ प्रतिबंधित क्षेत्र मे व्यापार करने की अनुमति देती है.

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निजीकरण के उद्देश्य (purpose of privatization)

कई बार ऐसा होता है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कई सरकारी कंपनियां सही से काम नहीं कर पाती है. इस कारण विकास की गति धीमी पड़ती है. जबकि निजी क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होता है. इसलिए कंपनी की कार्यक्षमता बढ़ जाती है. यही कारण है कि कई बार सरकार कंपनियों का निजीकरण करती है.

कई बार सरकार अपने राजस्व में बढ़ोत्तरी के लिए भी कंपनियों का निजीकरण करती है. इससे सरकार को भारी पैसा मिलता है, जिसका उपयोग बजट घाटा कम करना या भिन्न प्रकार की जनकल्याण योजनाओं पर खर्च करना होता है.

कई बार अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाने के लिए सरकार उदारीकरण की प्रकिया अपनाती है. इसका मतलब होता है कि व्यापार के नियमों को सरल बनाना. इसी उदारवाद नीति को अपनाकर सरकार निजीकरण करके अर्थव्यवस्था के दरवाजे सभी के लिए खोलती है.

कई बार बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए भी सरकार निजीकरण का सहारा लेती है. इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहती है.

अगर सरकार को अपनी किसी ईकाई से लगातार नुकसान हो रहा है तो सरकार उस ईकाई को निजी क्षेत्र में हाथों में बेच देती है.

इन उद्देश्यों के अलावा भी निजीकरण के कई उद्देश्य है. जैसे :- विदेशी पूंजी को आमंत्रित करना, विदेशी मुद्रा अर्जित करना, औद्योगिकीकरण के लिए वातावरण तैयार करना, कल्याणकारी गतिविधियों को प्राथमिकता देना, वाणिज्यिक आधार पर सार्वजनिक उद्यम संचालित करना, औद्योगिक शांति की रक्षा के लिए.

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निजीकरण के लाभ (benefits of privatization)

जैसा कि हमने आपको बताया है कि निजी क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होता है. इसलिए कंपनी की कार्यक्षमता बढ़ जाती है. कंपनी का प्रदर्शन अच्छा होता है. कंपनी के कर्मचारियों पर भी अच्छे प्रदर्शन का दबाव होता है.

सार्वजनिक इकाइयों में कई बार जरुरी साधनों की कमी के कारण उत्पादकता पर असर पड़ता है. इसके विपरीत निजी क्षेत्र में अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए साधनो का उचित उपयोग किया जाता है.

सार्वजनिक कंपनी का बाज़ार पर एकाधिकर होता है. प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण कई बार गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है. इसके उलट निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा होने के कारण गुणवत्ता का ध्यान रखा जाता है.

जैसा कि हमने आपको बताया है कि निजी क्षेत्र में कर्मचारियों पर अच्छे प्रदर्शन का दबाव होता है. कंपनी के प्रबंधक सीधे-सीधे मालिक के प्रति जवाबदेह होते है. इसलिए कंपनी के मुनाफे के लिए हरसंभव कोशिश की जाती है.

निवेशक भी सार्वजनिक कंपनी के बजाय निजी क्षेत्र की कंपनी में निवेश करना ज्यादा पसंद करते है.

निजी क्षेत्र की कंपनी बाजार में मांग और आपूर्ति के अनुसार फैसले लेती है. इससे अच्छी गुणवत्ता और दाम में कमी आती है.

सार्वजनिक इकाइयों की अपेक्षा निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार के अवसर भी सिमित होते है.

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निजीकरण के नुकसान (disadvantages of privatization)

निजी क्षेत्र की कंपनियों की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है. सार्वजनिक कंपनी से जुड़े किसी फैसले को लेने या न लेने के लिए जनता सरकार को बाध्य कर सकती है, लेकिन निजी क्षेत्र की कंपनी सिर्फ अपने हित के अनुसार फैसले लेती है.

निजी क्षेत्र की कंपनियों का लक्ष्य सिर्फ व्यापरिक लाभ कमाना होता है. ऐसे में इस क्षेत्र में सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है.

निजीकरण के कारण अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण कम होता है और उद्योगपतियों का नियंत्रण बढ़ जाता है. इससे आर्थिक असमानता उत्पन्न होती है. साथ ही रोजगार की कोई गारन्टी नहीं होती है.

कई बार निजीकरण की आड़ में सरकार महज कुछ प्रभावशाली उद्योगपतियों के पक्ष मे नीतियां बनाती है. ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था पर गिने चुने लोगो का कब्ज़ा हो जाता है और निजीकरण के फायदे नहीं होते है.

इसके अलावा निजी क्षेत्र में अगर बाज़ार में किसी कंपनी का एकाधिकार होता है तो प्रतिस्पर्धा ना होने कारण कंपनी अपने फायदे के लिए चीजों के दाम बढ़ा देती है.

भारत में निजीकरण का इतिहास (History of Privatization in India)

भारत में निजीकरण की शुरुआत साल 1991 में हुई थी. उस समय देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था. ऐसे में सरकार ने घाटे में चल रही कम्पनियों को निजी क्षेत्रो को बेचने के फैसला किया. इस तरह साल 1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत देश मे निजी निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. निजीकरण की इस प्रक्रिया को आने वाली सरकारों ने भी जारी रखा और यह आज भी जारी है.

दोस्तों हमने निजीकरण क्या है?, निजीकरण कैसे होता है?, निजीकरण के उद्देश्य, निजीकरण के लाभ, निजीकरण के नुकसान, निजीकरण के इतिहास जैसी चीजों के बारे में जाना है. अब आप हमें कमेंट करके जरूर बताए कि निजीकरण होना चाहिए या नहीं होना चाहिए?

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