1991 में मनमोहन सिंह के गेम चेंजर बजट ने दी थी अर्थव्यवस्था को नई दिशा, जानिए बजट की ख़ास बातें

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Game Changer Budget – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के इतिहास के गेम चेंजर बजट की बात करेंगे. इस बजट को साल 1991 में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई को पेश किया था. उस समय देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे. नरसिम्हा राव ने ही रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह को अपनी सरकार में वित्त मंत्री बनाया. उस समय देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही ख़राब थी. ऐसे में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए बड़े बदलाव करने की छूट दी.

इसके बाद मनमोहन सिंह ने बजट पेश किया, उससे देश की दिशा ही बदल गई. उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए. इसलिए इस बजट को ‘game changer budget’ भी कहा जाता है. तो चलिए दोस्तों आज इस इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कि साल 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था किस दौर से गुजर रही थी और मनमोहन सिंह ने किस तरह के ऐतिहासिक सुधार किए थे.

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पिछली हुई थी अर्थव्यवस्था

दोस्तों साल 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही पिछड़ी हुई थी. इसके कई कारण थे, जैसे कि चीन और पाकिस्तान से युद्ध होना, शेयर बाजार में घपले होना. इसके अलावा उस समय आयात के लिए जटिल लाइसेंसिंग सिस्टम था और साथ ही भारत में विदेशी निवेश पूंजी पर भी सरकारी नियंत्रण था. इसके अलावा उस समय देश के पास महज 2500 करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा ही था. उस समय की अर्थव्यवस्था इतनी पिछड़ी हुई थी कि देश को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा था.

मनमोहन सिंह का बजट

दोस्तों ऐसी परिस्थितियों में मनमोहन सिंह ने उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण में बड़े बदलाव किए. इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी में भी बदलाव करते हुए  इम्पोर्ट लाइसेंस फीस को घटाया गया और एक्सपोर्ट को प्रमोट किया गया. कस्टम ड्यूटी को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी कर दिया गया. बैंकों पर से RBI का नियंत्रण कम कर दिया गया. जिससे भारत में निजी बैंक खुलने लगे.

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लाइसेंस राज खत्म कर दिया गया और वस्तुओं की कीमतों का फैसला बाजार पर छोड़ दिया गया. इसके अलावा भारतीय उद्योगों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार से प्रतियोगिता करने के रास्ते खोल दिए. मनमोहन सिंह के इन बदलावों के कारण ही अगले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेजी पकड़ी. तो चलिए अब इस बजट को हम आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं.

लैंडलाइन फोन के लिए वेटिंग लिस्ट

दोस्तों आज के समय में हमारे लिए फ़ोन लेना कितना मुश्किल है? अगर हमारे पास पैसे हैं तो हम इसी भी मोबाइल की दुकान से आसानी से फ़ोन और सिमकार्ड खरीद सकते हैं. लेकिन उस समय यह इतना आसान नहीं था. उस समय फोन स्टेट्स सिंबल हुआ करता था. लैंडलाइन फोन की वेटिंग लिस्ट महीनों तक हुआ करती थी.

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गाड़ी खरीदने के लिए सरकारी अनुमति

दोस्तों आज आपके पास पैसा है तो आप आसानी से कार या बाइक खरीद सकते हैं और अगर पैसा नहीं हैं तो बैंक से लोन भी ले सकते हैं. लेकिन उस समय गाड़ी खरीदना इतना आसान नहीं था. उस समय आपको अपने पैसों से गाड़ी खरीदने के लिए भी सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी. आपको सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने पड़ते थे, लाइसेंस लेना पड़ता था. यही नहीं उस समय सरकार ही तय करती थी कि देश में कितनी गाडियां बनेगी और उसकी कीमत क्या होगी. गाडियां तो छोडो उस समय सीमेंट खरीदने के लिए भी सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी.

मनमोहन सिंह ने खोला बाजार

दोस्तों इन दो उदाहरणों से आप समझ गए होंगे कि उस समय भारतीय बाजार कैसे सरकारी नियंत्रण में था. स्वतंत्र बाजार का अस्तित्व ही नहीं था. देश में क्या बनेगा, कितना बनेगा और उसकी कीमत कितनी होगी, यह सब सरकार के नियंत्रण में था. मनमोहन सिंह ने भारतीय बाजार को पूरी तरह से खोल दिया. भारतीय बाजार पर से सरकारी नियंत्रण कम किया. निजी कंपनियों को काम करने की आजादी दी गई. 18 इंडस्ट्रीज को छोड़कर शेष के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया. हालांकि इस बजट में रुपए का अवमूल्यन करने का विवादित फैसला भी लिया गया. केंद्र सरकार ने बैलेंस ऑफ पेमेंट्स को सुधारने के लिए रुपये के अवमूल्यन का फैसला किया था. इसके तहत रुपये की कीमत 20 फीसदी तक कम की गई.

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